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॥१०७॥ हाहाकार भयो पुर माहीं। नारद पवरि ई पुनि ताहीं॥ सो बालक तुम नगर बताये। जा कास्न जादी चडि आये ।। हों पठ्यो जटुनाथ गुसाई। कुंवर षबार ले श्रावो जाई॥ होला। भयो रूष चित राय के प्रवन सुनी यह बात। चोर येक पकयो मे निसां मल्ल मे जात ॥ चौपई। देषों ताहि प्रायस जो पाउं। यह संदेस ले कृष्ण सुनाउं॥ चल्या टूत जो अम्या पाई। सुरति कुंवर पे पहुंच्यो जाई॥ देषे कुंवर बंधे नागफांसी। कौन काज कीना अबिनासी॥ कुंवर नेन भरि श्राये पानी। सुनी कुंवर सेवग की बानी॥ बोल्या कुंवर कोन विधि आये। कले टूत जदुनाथ पठाये। आये कृष्ण सहित चलि जादों। ................ भय जन को कुवर मन माहीं। तुमै छुडाय कोटें नृप बांहीं ॥ अाम्या ई कुंवर फिरि जाई। मेरो सब टुष कहो सुनाई। दाया पिता कहो परनाम। भल बात पाये इहिं गाम ॥ . सोला। लाज भई सुनि जीव मै कछु लष मन माहिं। .. सुनि पाई उषा जब दोरि गही उठि बाहिं॥ चौपई। टूत देषि जादों पे गये। कुंवर प्रनाम सबन को किये ॥ पूछी बात निकटि गुलावा। कहो टूत देषन क्यों पावा ॥