सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/१३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

॥१७॥ यस नाना भांति बामण करत में अति मुक्त ॥ सकल शास्त्र बिचार बेत्ता कस्त मत सिद्धान्त । लसत मुनि गण तहां बेठे ठोर ठोर हि दान्त ॥ देखिके मुनि बृन्द को दुधन्त भूप अनूप। ब्रह्मलोक सु प्राप्त जानो परम अपनी रूप॥ कन्व काश्यप के सु प्राश्रम मे गयो क्षितिपाल। जास चढं दिशि लसत मुनि गण मुकुत की मनु माल ॥ फेरि सचिव पुरोहित हि तजि गयो एक नश। तहां देखो कन्व मुनि नहि शून्य अाश्रम देश ॥ ... कहो भूपति इहां कोउ बचन उच गम्भीर। सुनत आई निकसि कन्या श्री समान शरीर॥ शीर निधि सो परम श्राश्रम स्वक्ष अमल अमन्द। निकसि बाई तहां ते सु शकुन्तला जिमि चन्द ॥ तापसी को बेश धारे कियो नृप सनमान । पूछि कुशल सु प्रश्न पूजा कियो अति सुखदान । कहो सह मुसकानि पाए कोन कारण भूप। कललु सो कम करहि भूपति काज सो अनुरूप ॥ महा मुनि को चाहि दशन आगमन यहि लेत। कहो ता सों देखि ता को भरे अानंद चेत॥ . गए हैं कहं महा मुनि बर कल्लु सुन्दरि तोन। शकुन्तलोवाच। गए हैं फल हेतु बन को पिता मम मुनि जोन ॥