पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/१३२

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॥१६॥ मदन ध्वज से भरे नाना रंग सुमनस भार॥ भूप सम स्तुिराज जानत देखि सुषमा धाम। पवन प्रेरित मनळु बरषतं सुमन बिटप ललाम ॥ लखत ऐसो बिपिनि भूपति गयो सस्तिा तीर। तहां श्राश्रम लखो मुनि को तपस तेज गंभीर॥ लसत नाना वृक्ष जेहां ज्वलित पाबक यत । गयो सो चलि निकट श्राश्रम परम भूपति तज्ञ ॥ बालखिल्य सु यती मुनि बर लसत जल तपधाम। लसत अनि अगार नाना परम स्य ललाम ॥ मालिनी जलं नदी पुण्या लसति जा के पास । बन्य जीव सु सोम्य जेठां करे हे सहबास ॥ देव लोक समान प्राप्रम पास भूपति जाय। पुण्य प्राप्रम देखिवे को कियो मन सुखदाय ॥ . . नदी बेष्टित परम आश्रम लसत सो अभिराम । बदरिकाश्रम सहित गंगा यथा पावन धाम ॥ कन्व काश्यप महा ऋषि के परम प्राप्रम पास। राखि सेना भट सबाल भूप आनद रास ॥ संग सचिव पुरोहित लि ले उतरि रथ तें भूप। चलो देखन कन्व ऋषि को ज्वलित पावक रूप ॥ देखि श्राश्रम की सु शोभा भयो हर्षित भूप। ब्रह्मलोक समान शोस्त भरो तेजस रूप ॥ पड़त द्विज बेद चारो बरक्रमे पदयुक्त।