पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/१३५

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unt महातेज तप को बल पाय। मोहिन पद ते देई गिराय॥ . कहो मेनका सो इमि बैंन। सुरपति भय सो भर अचेन। तुम अप्सरन मध्य छबि धाम। करलु मेनका मम यह काम ॥ होय हमारे अति उपकार। कोशिक को तप भङ्ग उदार॥ जैसें होय करलु तुम जाय। अहो मेनका मम सुखदाय ॥ सुरपति के सुनि बचन उदार। कहो मेनका सहित बिचार॥ भरे महातप क्रोध अमान। तेजस पुज सदृश शिस्ति मान ॥ जास समुझि तप क्रोध बिधान। तुम लु उरत स्हत सुरत्राण ॥ हम जेनें केसे ता पास। प्रोसि करेगो मेरो नाश ॥ .. मुनि बशिष्ठ के पुत्र अनेक। जेहि मारे नहि छोडे एक ॥ जन्मि क्षत्र कुल भो द्विज वर्ण। सृष्टि टूसरी लागो कर्ण । तप बल तें जेहिं नदी अमान। करी कोशिकी पुण्य महान॥ कोशिक गे तप करण बिशाल। परो कळू दिन मे अति काल॥ ऋषि मतगता को परिवार। पालन करो जीव गण मार॥ भए व्यास सम ऋषि मतङ्ग। कोशिक आय कुशल लखि सङ्ग॥ तुम सह ता सों या कराय। आपु सोम तंह पियो उराय ॥ गो त्रिशा करि गुरु अपराध । यो शरण ता को निर बाध ॥ ऐसे जा के कर्म महान। सो न दले कहि को सुरस्त्राण ॥ सृष्टि नाश कारण समस्य। बिश्वामित्र प्रताप अकथ्य ॥ हम सी नारि जितेंद्री ताहि। कोन भांति सों परसत चाहि ॥ जा सों उस्त रहत सुर सङ्घ। ताहि जीतिहें का हम स्वर्बु ॥ तव शासन शिर राखि सुरेश। ओसि जाइहें हम तेलि देश ॥