॥२८॥ पुत्र माता सदृश माता होति यातें भूप॥ . पुत्र भार्या जनित देखत करत यों अानन्द । मुकुर में प्रतिबिंब अपनो देखि सदृश अमन्द ॥ प्राधि सों अरु व्याधि सों पीडित हि यों सुखदान। होति भार्या धर्म तापित कों यथा जलपान ॥ क्रोध तू मे करत नर नहि भास्या अपमान। धर्म रति अरु प्रीति ता मे देखिके अतिमान ॥ धूरि धूसर देखि सुत कों पिता हिय सों लाय। लहत है. अानन्द इतनो तोन वानि न जाय॥ : भरो सुत. अभिलास पायो पापु सों तब पास। करत हो अपमान हेरि कटाक्ष सों तन तास ॥ . धरति अंर न करति भेद पिपीलिका अति अश। भस्लुगे का नही पात्मज भूप तुम सर्बस ॥ अस्पर्श बामा बसन जल को तथा सुखद न होत। पिता पावत लाय हिय सों यथा आमज पोत ॥ जातकृति मे पुत्र मस्तक घ्राण जानत तोन। बेद मे यह मंत्र लिपि है करत बेत्ता जोन ॥ . मंत्र। अमदासम्भवसि हृदयादभिजायसे। आत्मा वे पुत्र नामासि सजीव शखा शतं ॥ जीवितन्त्वदधीनं मे सन्तानो ऽपि तवाक्षयः।
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