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॥१२ ॥ जायगो फटि शीस तुम्लो फूटि शतधा होय ॥ पति करि प्रवेश सु भार्या मे लेत निज फिरि जोन। सुनलु जाया कहत यात बेद बेत्ता तोम ॥ होत हे पति अातमा सो पुत्र अति अभिराम । कस्त संतति तीन तारत पितर सिगरे ग्राम ॥ पुनाम नरक महाम तें जो पितर तास्त सर्व। पुत्र याते कहत हैं बेदन सुमति प्रखर्ब ॥ सो भायी गृह कार्य दक्षा पुत्रवती हे तीन। सो भार्या पति प्राण जा को पतिव्रत स्त जाम ॥ अई तम पति को सु पनी सखा अति अभिराम। त्रिबर्ग को हे मूल भार्या मोद दायक माम ॥ बिना भार्या यह कर्म न होत है म गृहस्थ । होत भार्यावंत श्रीयुत जाम् भूपति तस्थ ॥ सखा होति एकांत मे पति की प्रियंबट वाम । धर्मकृति मे पिता की सम मातृ दुःख मेश्राम ॥ होति है बिग्राम दाता दुर्गा पथ मे तोन। बिना भार्या पुरुष को बिश्वास मानत कोम ॥ प्रेत पथ मे होति साथिमि एक पति जब जात। लेति गति पति पाप पत्नी प्रथम जास निपात ॥ करत पाणि ग्रहण यातें पुरुष जे मतिमान। भारया पति पाय साधत दोड दिशि सुखदान ॥ पुरुष प्रात्मा श्रापु जनमत पुत्र को धरि रूप।