॥१३०॥ तोन बिश्वामित्र चालत होन ब्राह्मण लुद्ध । श्रेष्ठ तुम्हरे पितर दोउ रूप गुण तप ऐन। भई तिन तें कहति हो तुम पुंचली लों बेन ॥ सुनत योग्य न बचन तुम्से रहित लज्जा जोंन । कहति मो लिंग टुष्ट तापसि कुरु जथेच्छित गोंन॥ कहां कोशिक मुनि मुकुट कन्हें मेनका गुण धाम। कहा तुम अति कृपिणि धारें बेष तपस्विनि बाम ॥ पुत्र है अतिकाय तुम्लो महाबल भय गात । भयो थोरे योस मे किमि कहति झूठी बात ॥ भई योनि निकृष्ट तें तुम पुंथली इब बेन। कति जाई मेनका सु जदृछ्या बस मैन ॥ कति तू जो है परोक्ष न बिदित ल्म को तोन। हों न जानत तुम्हे कीजे यथा इच्छा गोंन । शकुन्तलोवाच । सर्षप मात्र दोष पोरन को लखत तुम भूप। चाहि चाहत नही अपनो दोष बिल्व सरूप ॥ मेनका है देव गण मे त्रिदश अनु जास। उच्च तुम्हरे जन्म.ते के जन्म मो तो पास ॥ अटत हो तुम भूमि मे हों गगण गामी भूप। बीच हम सों ओर तुम सों मेरु सर्षप रूप॥ सत्य है यह बात मेरो कहो तुम सो जोन। तुम हि जनाइवे को अमा कीजो तीन ॥
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