पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/२०

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॥8॥ नगर में जाउं और वहां बैठ श्राप का गुन गाउं। तब शेश ने हंसकर कहा कि अब राजा तुम्हें घर जाने की इच्छा लुई है भला कुछ प्रसाद लम देते हैं तुम लेते मानो। यह कह चार लअल मंगवा राजा को दिये और उस का गुन कल्ले लगा एक रन का यह सुभाव है कि जितना गहना चाहोगे सो यह तुम्हें देगा और दिन भर देते बिलंब न करेगा और दूसरे नग का यह सुभाव हैं कि हाथी घोडे पालकियां जितनी तुम मांगोगे इतनी इस से पानोगे और तीसरे लगल का यह गुन है कि जितनी लक्षमी जाचोगे उतनी यह देगा और चौथे न का यह प्रभाव है हरि भजन और सतकर्म करने की जितनी इच्छा रखोगे उतनी यह पूरी करेगा। .. . इस तरह चारों लअलों के गुन राजा से समझाकर कहे ओर बिदा किया। राजा हाथ जोड़कर खड़ा हो कल्ले लगा महाराज। में आप के गुन को उपमा नहीं दे सकता पर आप मुझे दास समझकर कपा रखियेगा। यह कहकर राजा वहां से रुखसत जुना श्रोर बैतालों को बुला सवार को अपने नगर को श्राया। जब कोस एक नगरं रह गया तब बेतालों को छोड़ आप राजा पांचों पांत्रों शल्य को चला। देखता क्या है कि एक दुर्बल भूखा ब्राान चला पाता है। जब वह पास आया यह उस ने कहा कि में भूखा हूं कुछ मुझे भिक्षा दे जो में जाकर कुटुंब को पालूं। सुनते ही चिंता कर अपने मन में कल्ले लगा इस बालन को इस में से एक लाल हूं यह बिचार कर बालन से कहा कि देवता मेरे पास चार स्त्र हैं और चारों के ये गुन हैं जो तू इन में से चाहे वन में