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॥२४॥
छुवत हि बेस्या कलं छिटकाई छिटकावत हि वा के दोन्यों हाथ कल करि बांधे गये। तब वह साधु पीडा करि दुषी भयो। तब पुकारि ऊठयो तब वा सौंं कुटनी कलि यत मलय पर्वत तें बिटई आये है जो कहु द्रव्य सु सब ही द्रव्य स्तन जु कछु हे ते सब रेलगे तब छुटलुगे मांतरू यह तुम नि मारि गरिन्। तब ईनि सब ही स्तन ट्रव्य दीये। अब यह सर्व सपाई करि हमारे साथि लाग्यो है। यह समस्त बाती सुनि राजा के सेवकनि न्याव बिचायो॥