पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/४२

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॥ ॥ .. च्यो। भागे ते भुषे रिसाई कही। काहे ते तु बहोत अबेरे प्रायो। तब सुसे कलि यह मेरी अपराध नांहि मारग मै श्रावत और एक सिंघु मो को पकरि रयो मै वा सों बलुतं सपत करिके तुम्ह सौ करून कों आयो लौं। स्यंच यह बात सुमि बलुत रिसानों क्रोध करि कल्यो। बेगि चलि वन कहां है मोकु दिषाई देहि। तब सुसा को ले गयो ले जाई गले कुवा ऊपरि ठाडो कीयो। सुसे कलि या भीतर देषु स्यंघ है। यह कहि पानी मे सिंघ कों वाही सिंघ की परां ही विषाई। तब उनि स्यंव प्रापनों प्रतिबिंब पानि मे देष्यो। तब ऊनि सिदि रीस करि बिनु बिचार लि प्रापुनी परछां हि कों और सिंघ जांणि वा को मावि को कुवा मांहि पखो परत हि मुवो। ताते हुँ कहत में बिनु बिचारे काम न करिये अरु जा के बुधि ता ही के बलु। तब कागनी कस्यो सुन्यो मे ईला जु उपाय बुझिये सु कही। तब काग कलत है। ईली निकटि ही के सरोवर में राजा को पुत्र मानु नित्या ही प्राय करत हे सु वळं सोने की सांकली लाथ ते ऊतारि सरोवर के तीर राषत है सु तु वह लेकर या सर्प के षोउर में उरि श्राव। श्रागें जब वह सनान करन लाग्यो तब सोने को सुत्र वलि ऊतारिधखो। इहि बिधि कागनी वह सांकली ले आई श्रानिकरि सांप के घोटरा मे धरि रुष परिबेठी। तब राजा को पुत्र देखें तो सांकली नादि काग ले गयो। तब राजपुत्र के सेवक षोजन लागे षोजत षोजत वा पोटरे में सांकली देषी अरु सांप देष्यो। तब सांप को मारि सांकली ले प्राये॥