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-- -- - - ॥ 1॥ में जाय अति चिंता कर करने लगा कि मैं कुंडलपुर पाया था कि अभी जाय वष बलराम को सब या । रुक्मिनी को ले बाउंगा सो मेरा प्रन पूरा न लुत्रा : पत खोई अब जीता न रहूंगा। इस देस श्री यद । बैरागी लो कहीं जाय मरूंगा। जब रुक्मने ऐसे कहा तब उस के लोगों में से कोई : ! महा बीर लो श्री बडे प्रतापी तुम्हारे हाथ से जो वे । विन के भले दिन थे अपनी प्रारब्ध के बल से नि ! श्राप के सनमुख लो कोई शत्रु कब जीता बच सक । हो ऐसी बात क्यों बिचास्ते को कभी हार होती है । बीरों का धर्म है जो साल्स नहीं छोडते भला रिपुत्र मार लेंगे। जद यो विस ने रुक्म को समझाया त लगा कि सुनो। लायो उन सों श्री पत गई। मेरे मन अति लज्जा भई॥ जन्म न हों कुंडलपुर जाई। बस्न और ही गांव बसाउं॥ यों कह उन इक नगर बसायो। सुत दारा धन तहां मंगायो॥ ता को धयो भोजकटु नाम। ऐसें रुक्म बसायो गाम॥