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पई॥ रिस मन मे न पाईये। बैठे पिछवारे जाय कीनी जू उचित यह लीन्हा जो लगाय चोट मेरे मन भाईये। कान देके सुनी अब चालत न और कछु ठोर मो को यही नित नेम पद गाइये। सुनत ही श्रानिकरि करुना बिकल भये फेखो द्वार ईत गहि मंदिर फिराइये । जेतेक वे सोती मोती श्राब सी उतरि गई भई लिये प्रीति गळे पाव सुषवाईये। श्रोचक ही घर माझ सांझ ही अगनि लागी बडी अनुरागी रहि गई सोउ गरिये। कहे अहो नाथ सब कीजिये जू अंगीकार से सुकुमार लरि मोही को निहास्पेि। तुम्लो भवन और सके कोन प्राय इला भये यो प्रसम्म छानि छाई प्राय सारिये। पूछे प्रानि लोग कोने छाइ लो छवाय लीजे दोजे जोई भावे तन मन प्रान बारिये। सुनी ओर परचे जे आये न कबित मांझ बांझ भई माता क्योन जोन मति मागी है। लुतो एक साह तुलादान को उछाल भयो यो पुर सबे यो नामदेव रागी है। ल्यावो जू बुलाय एक दोय तो फिराय दिये तीसरे सों आये कहा कही बउ भागी है। कीजिये जू कछु अंगीकार मेरो भलो होय भयो भलो तेरो दीजे जो पे पास लागी है। जाके तुलसी है ऐसी तुलसी के पत्र मांझ लिष्यो अाधो राम नाम या सों तोलि दीजिये। कहा परिलास करो कै दयाल देषि होत केसो ष्याल या कों पूरी करो रीझिये। लाये एक कांटो ले चढायो पात सोना संग भयो बडो रंग सम होत नाहि लीजिये। लई सो तराजू ता सों तुले मन पांच सात जातिपांति हूं को धन धयो पे न धीजिये। पयो सोच भारी टुष पावे नर नारी नामदेव जू बिचारी एक और काम कीजिये। जिते ब्रत दान और मान कीये तीरथ में करि संकल्प या पै जल गरि