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पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/८४

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॥६॥ जानि संत सुष मानि अावे घर मध्य लीजिये। आये अाम्या पाय धाम कीनी अभिराम रीति प्रीति कीनी पारावार चिठी लिषि दीजिये। जिये कपाल वही बात प्रतिपाल करो चले जुग बीस जन संग मति रीझिये। कबीर रैदास प्रादि दास सब संग लीये आये पुर पास पीपा पालकी ले पायो है। करी साष्टांग न्यारी न्यारी विने साधुनि कों धन दे लुटाय सो समाज पधरायो है। जैसी कीनी सेवा बलु मेवा नाना राजभोग वा नीके न जोग भाग कापे जात गायो है। जानि भक्ति रीति पर रहो के अतीत लोलु करिके प्रतीति गुरु पग लगि घायो है। लागी संग रानी दस योय कही मानी नही कष्ट को बतावे मन नहि लावही । कामरीन फारि मध्य मेखला पहरि लेवो गरि अाभरन जो पे नही भावही। कानू पे न होय दियो रोय भोय भक्ति आई छोटी नाम सीता गरे उारी न लजावही। यतू टूरि उारी करो तन कों उधारो कियो दियो रामानंद लियो पीपा न सुलावही। जो पे आप कृपा करी दीजे काढू संग करि मेरें नही रंग या मे कहीं बार बार है। सोल को दिवाय ई लई तब कर धरि चले टरि बिप्र एक छोडो न बिचार है। पायो बिष जियो पुनि फेरिक पठायो सब आये यो समाज द्वारावती सुष सार है। स्ले कोउ दिन अाग्या मागी इति. रहि वे की कूटे सिंधु माझ चाल उपजी अपार है। आये आगे लेन प्राय दिये हैं पठाई जन देषी द्वारावती कृष्ण मिले बलु भायके । मल्ल मल्ल मांझ चहल पहल लषी स्ते दिन सात सुष सके कोन गायके। आशा दई जायवे की जायवो न चाहे लिये पिये वन रूप देषो मोही को जु जायके। भक्त बूडि गए यह बडोई कलंक भयो मेटो तुम अंक संक