पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/८५

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॥ई ॥ गही अकुलायके। ई लेके छाप पाप जगत के टूरि करो टरो कहूँ और कही सीता समझाय है। चली पहुंचाय वे को प्रीति के अधीन श्राप बिन जल मीन जैसे ऐसे फिरि आये हैं। देषि नई बात गात सूके पट भीजे लिये लिये परिचानि प्रानि पग लपटाये हैं। छठेई मिला न भई बन में पठान भेट लई छोनि तिया कीया चैन प्रभु धाये हैं।अभ्र लगि जावो घर कैसें श्रावे उर.बोली ली जानिये न भाव पेन आयो है। लेत हो परीछा मे तो जानों तेरी सीक्षा रे पे सुनि एक बात कानः अति सुष पायो है। चले मग टूसरे सुता में एक सिंघ स्ले प्रायो बात लेत सिष्य कियो समुझायो है। आये और गांव सेषसाई प्रभु नाम रहे को बंश लरे ठरे चीधर सुहायो है। योउ तिया पति देषे आये भागवत रे पे घर की कुगति रति सांची ले दिषाई है। लल्या उतारि बेचि दियो लियो ता को सीधो करो अजू पाक बधू कोठी में दुराइ है। करी ले रसोई सोई भोग लगि बैठे कन्यो प्रावो मिलि योउ लेवे पाछे सीत भाई है। वाढू को बुलावी लावो श्रानिके जिवावो तब सीता गई वाही ठोर नगन लपाई है। पूछे कही बात ये उपारे क्यों हैं गात कही ऐसे ही बिहात साधु सेवा मन भाई है। श्रावें जब संत सुष होत है अनंत तन क्यो के उपारो कहा चरचा चलाई है। जानि गई रीति प्रीति देषी एकई नही मे म ढू कहावें ऐ पे छटा ढू न पाई है। दियो पट अाधी फारि गल्केि निकारि लई भई सुष शेल पाछे पीपा को सुनाई है। करे बेस्या कर्म अवधर्म है हमारी यही कही जाय बैठी जहां नाजन की दी है। घिरि आये लोग जिन्ह नैननि को रोग लषि टूरि भयो सोग नेक नीके ठूत ली है। कहे तुम कौन वारमुखी नही