पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१५३

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- - - - अति परमाणु विद्युत्कण ज्ञानकोश (अ)१३६ अति परमाणु विद्युत्कण कि इन दो कणोके बीच काफी प्रशस्त स्थान अम्पीयर तीव्रता वाली बिजलीकी चालक-शक्तिक रहता होगा। यही कारण है कि ये कण किसी एक वोल्ट द्वारा किया हुश्रा काम) बल्कि इसका धातुके पत्रसे बिना टकराये पार निकल जाते हैं। बहुत थोड़ा भाग किरण रूपसे जाता है और विद्युत कणका व्याल १०.१३ और परमाणुका वाकी उष्णता रूपसे बाहर होता जाता है। किरण व्यास १०८ सेन्टीमीटर होता है। यदि सूर्य रूपसे कितना बाहर पड़ता है यह लॉरमूरके सूत्र मालिका से इसकी तुलनाको जाय तो पृथ्वीका से निकाला जा सकता है। व्यास उसकी कक्षाका...है। अब यदि यह विद्युत्भार गतिवर्धन १०.४०४१०५२१०० कल्पना की जाय कि पृथ्वी भी विद्यत्कण है तो गति परमाणुका गोलाकार इतना बड़ा हो जावेगा कि अर्ग तब १० में के केवल १०२ अर्ग ही किरण यदि सूर्यको मध्य मान लिया जाय तो उस गोला- रूपसे बाहर आते हैं। बाकी के उष्णता रूपसे कार की त्रिज्या पृथ्वी और सूर्यके अन्तरसे आते हैं। चौगुनी होगी। सादे वातावरणके समय चार इस शक्ति की उष्णताकी अपेक्षा किरणरूपसे इंच जगहमें एक विद्युत्कण करीब करीब दस अथवा किरणोंकी अपेक्षा उष्णतारूपसे कैसी और करोड़ दूसरे कणोंसे बचाकर जाता है । बल्कि जो कितनी शक्ति बाहर आवेगी, यह बात विचारणीय परमाणु अत्यन्त धन धातुओंसे होकर जाते हैं है। यदि किरणविसर्जन शक्तिकी ही श्रावश्य- उनको तो इतना भी प्रशस्त मार्ग नहीं मिलता। कता अधिक हो तो विद्युत्कणका बेग प्रकाशवेगके मिलीमीटरके करीब करीब हज़ार। भागके बराबर | बहुत कुछ लगभग होना चाहिये और उसकी गति उनको प्रशस्त मार्ग मिलता। पर वह मार्ग सीधी का अवरोध उसी जगह पर होना चाहिये। यदि रेखामें नहीं मिलता और इसीलिये प्लतिनमके विद्यत्कणका वेग प्रकाशवेगका: भाग हो और प्रस्तरमेंसे जाते समय उस प्रस्तरके पृष्ट भागके उसकी गति उसके व्यासके बराबर अन्तरान्तमें पास ही रुक जाते हैं। फिर उस गतिरोधसे ही रोकी गई हो तो प्रायः १० सैकड़ा शक्तिकिरण क्ष-किरणें उत्पन्न होती हैं। | विसर्जन रूपमें प्रगट होती है। किन्तु उस घूमते समय इन कणोंके पारस्परिक आघात विद्युत्कणको रोकनेके लिये प्रायः दोसे तीन हज़ार की तुलना आकाश स्थित तारोंसे कीजा सकती है। किलोवेट तक शक्ति लगेगी। परन्तु इसमेसे इन घूमनेवाले विद्युत्कणोंकी स्थिति सूर्य मालिका विद्युत्कण परमाणु परिमाणमें ही रोकना अधिका- पर आनेवालेधूम्रकेतुके सदृश होती है। जिस भाँति धिक शक्य है। इसके लिये ५० वेट शक्ति लगती धूम्रकेतु घूमता घूमता किसी ग्रहके गुरुत्वाकषर्णके है किन्तु इसमें क्ष-किरण रूपमें यह केवल एक दश जालमें फंसाकर सदाके लिये अपनी ग्रहमालाका लक्षांश ही मिलता है। किन्तु जैसे जैसे गति कम एक ही ग्रह बना लेता है उस भाँति परमाणु रूपी होती है वैसे वैसे उष्णतारूपमें अधिकाधिक ग्रह इस विद्यत्कण रूपो धूम्रकेतुको सदाके लिये शक्ति प्रगट होती है। विद्युत्कणकी कुल शक्तिका अपनी मालामें रखलेता है। इससे यह पता चलता प्रमाण उसके परिणाम और उसे रोकने में लगने है कि विद्युत्कण परमाणु के परिमाणमें ही रोका वाले समयमें प्रकाश जितनी दूर जाता है उतने जाता होगा। अर्थात् १० सेंटीमीटरके अन्तर अन्तरके प्रमाणके बराबर रहता है। परही रोका जाता होगा एक विद्युत्कण रोकने के (११) विद्युत्कण सिद्धान्त-वहन तथा किरण लिए.डाइंन शक्ति लगती है (डाइंन = सेन्टीमीटर निक्षेपण- पद्धतिसे एक ग्राम वजन एक सेन्टीमीटर ऊपर (अ) वहन-द्रव्य परमाणुमें जो विद्युद्गुण उठानेके लिये लगने वाली शक्ति ) इसीलिये धर्म हैं वे सब विद्युत्कणके कारण हैं। यह दिखाने श्रात्यन्तिक किरण विसर्जनके दृश्य दिखाई पड़ते | का प्रयत्न लॉरन्टज़ तथा लॉरमूर दोनों ही विज्ञान- है। प्रकाशके वेगका. वेग रखने वाले विद्यत्कण वेत्ताओने किया है। उनकी कल्पना थी कि जिसे की गतिको रोकनेके लिये कितन. शक्ति लगती है विद्युत्प्रवाह कहते हैं वह सच्चा प्रवाह नहीं है किंतु यह निम्नलिखित सूत्रसे मालूम होगा। विद्यत्कणोंकी गति है। वे कदाचित् परमाणुओं के साथ घूमते होंगे । और उसी तरह वे शक्ति+समय%3D पग'Xx परिणाम विद्यद्विष्लेषणके समय भी घूमते है, अथवा जैसे १०.२°४ (१०) ४१०.८ =१० अर्ग। १० वे विरल वायुमें रहते हैं वैसेही वे प्रशस्त रूपसे अर्ग अर्थात् करीब करीब १० वॅट. (वॅट-एक घूमते भी होंगे। अथवा घन पदार्थों में उष्णता.