पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२२२

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व्रदैकांर्वद ज्ञानकोष दीक्षित; वैष्कर्मकुँचि-सुरेश्मरदृ उपऐशसाक्ली- शंकराचार्य; अंह तकामधेनु-उमामहेम्बर; अद्देत- कालामृत्र-चारायण पण्डित; अर्दतपौस्तुभ-भ- होमी दीक्षित; अदैतचन्तिका-ब्रनंहुभट्ठदृ अबैत- बिटाकौस्तुभ-हुहादेषानंद; अद्रतचितामणी- म्लब्रस्था व्रटूतडानसर्मख-युफुन्दमुनिदृ बाँह. व्रन्नदीप-नित्यांनन्ददृ अद्रश्ततरंगिणी-रामेन्नरु- शालो८ अर्दतदर्षण-मुजराभदृ अद्रश्तवीपिका- बिद्यारएयदृ अद्रश्तवीगिका-मृसिदाश्रमदृ अद्रश्ननि- र्णय-अप्पम्पादीक्षितदृ अर्दत्तनिर्णयसंप्नह-तीर्थ- सामिन्दृ अरैतपश्रपदो-शक्कराचार्थदृ अहँतपरि- शिष्ट-केशवदृ अर्देतप्रकाश-रामानन्दतौर्था अबैत- वीधदीपिका-नृसिंहूभदृदृ अब्बूश्ताहाश्रिद्यापद्धबि- नन्दोध्यगचार्य गोपातश्रमदृ अबैत व्रहासिदी- सदानन्द्र काशित्वरदृ अरैतभूश्या ( ? ) अरैतमक- रंइ-ड्सन्मीघर फबिदृ अर्दतमक्ल-भघुन्दनबाच- ल्यति; ब्रर्दतमंजरी-मभुतूदनधात्वस्पतिदृ अबैत- मठसार-मधुतूदनथाचस्पतिदृ अर्देतनुकासार-दृ लोकगाथा अर्द्ध'तमुबर-रंगराज; अङ्कश्तरठन-रंत्यं राज्ञाअबैतरत्नकौष-अखण्डग्नन; अद्वश्तरन्न कौप-मृसिंहाधमदृ अर्दतरत्नरक्षण-भभुसूदन सरससी; अब्र तस्प अक्षरी-मल्ला पण्डिढा अड सादृ- हस्य-रामानन्दतीथंपृ अर्दतरीसि-वृसिंह पभाध्र- मिन्दृअरैतबाद-मृसिहाश्रम; अवैतबिद्यापिचार- पैफटाषार्षदृ अद्रश्तपिद्याधिजय-भहाबार्यदृ अबैत- ईट्टेवेफ-आडाधस्मट्टूदृ अर्देतविवेफ-राभकृष्ण; श्र- द्वत-वैक्तिखिशंतसंप्रदृ-मरसिहदृ अर्दतशास्त्र- 1 सारोद्धार-रंगोजीभदृदृ अबैतसिवांतबिबेचन- द्रदृगनंद तरसती; अदृतानद "य-इत्र नामक एफ प्रसिद्धमहापुरुब ५ काशीदेत्रमैं सन्यास ग्रहण क्योंपर रहते थे । थे हुँ मूलत: महाराष्ट्र माह्वाणये और प्रचंड विद्वान ये क्युतसे शिष्य इनके पास विधाध्यायन के लिये आते थे इसलिये काशीमै इन्हें "गुरुसामी हैं कहते ८ ये। र्शाकर-येदान्तविज्यपर इनका "व्रह्मविणभरण’ श्ले नामका एक अद्वितीय ग्रंथ हैं । सपाक्याकृत वेदान्त सार' नामका जो ग्रंथ है उसीपर उनकी संस्कृतटीका है । इनके दो शिस्प थे एक मध्व मुनीश्वर ओर दूसरे फटिर्वधाक्ति कविता करने वाले णमृवृराय 1 इनका क्या किस शफमैं दुआ तथा मृन्युक समय इनकों क्या आयु थी इसका पडा पता नहीं है परन्तु अर्वापीन कौशकारों का फुथनं हैं…किं शक १६८० मैं पार्थिव नाम संषल्लरमै य काशीम समाधिस्थ हुए । डाभूतराग्रके गुरु अम्बिका सरस्वती ये यह उन्हींफे "अविनाश तन्देहस्थ्य' नामक ग्रंथसे स्पष्ट है । एक दात कपृदृ यह भी है फि मध्वमुनिने अपने गुरु अह तामन्दसे राय महोंश्यकौ उपदेश दिलवाया 1 [तो का का० म ८अ० का० १ ३ ५ ० ३ अघमसतनि-श्यरक दशम अधर्भयुरू आवरणकें कारण संतति अवश्य डस्थझ होती हँ ऐसो सन्ततिसे अनेक तरहके विकट समाजिक ड्डे धरन सम्मुख उपस्थित होने हैं । यह कहिये कि वेश्यागमन अथवा शरीर-टिकाते हीं ऐसी संतति पैरा हो, तो नहीं है, ओर मार्गोंसे भी ऐसो सन्तति पैदा हीं सकती हैं । कमले फम अधर्म- संतति की संख्या पढाने के कारण येश्यागअव से ड़हाग है । द्दसऐशमैं अधर्म संततिके अनेक कारण ३ है । देव दासी प्रथाके कारण मन्दिरोंकों अर्पित दासिगौमी संतति, विषया जिर्मोंकें साथ अनीति मय आचरण करके उदृपध होनेवाली संतति-यहीं दो प्रधान अधर्म सन्तति हैं । इस देशमें कुमारि… र्योंसे होने वालो संतति नहीं कै पराधर हैं । परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है फि इसका सर्वथा अभाव रै हैं । 'अनाथधालकाअम' की रिपोर्ट ३ मै कृमारियोंते उदृपष संतनिकै माँकडोंका उल्लेख ड्ड रहता है । पआत्य देर्शर्षि 'अधर्म संतति’ की राइ षदुषा कुमारियोंके कारण दी होतो है अधर्म संततिके भि।। अधर्म संततिके बिप्र भिज प्रयाण, समान आचार विधियों से निमंत्रित समाबोंकों पैत्रिक कशा का कुछ कुछ दिग्दर्शन करते हैं । फिर भी 2 जव हम थिस भिव्र राहोंकौ तुलना करेंगे तं। हँ अधर्मसन्तति कैप्रमाण से उन उन राहोकों नैतिक सभ्यताका निर्णय नहीं किया जा सकेगा । मान लीजिये किसी देशूकी अधर्म संतति का प्रमाण हुँ यमुत अधिक हीं तो उसका कारण केवल यहीं नहीं हो सकता कि उस ईराकी नैतिक अवस्थाखरात्र हो गर्रहैवक्तियहहो सक्याहै फिउक्तदेशफी आचार दृ विधि ( 2९1०।-१1 0०6१९) अथवा आर्थिक अवस्था हैं युबावस्थामैँ वियाह फे सिये