पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२८०

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खम है मुभुतमैं ( १त्४-ये ) भी इन्हीं भेदोंफा उल्लेख किया है । सुभुतमैं इन बारीका विस्मृत घर्णदृ। भी स्तिटाहैं । बिधमाग्निमे आहे अत्र… हूँ पाननकी किया ठीक भी विदित होतो हो, किन्तु दृ इससे मेदोगृद्धि, शेत्य, मसावरोध, अतिसार, पेट 1 मैं बोझ, पेट का गुड़गुड़स्ना इत्यादि विकार ३ ज्यक्ष दीतेहैं । वीदणक्तिमैं खाया हुआ अन्न शौध ही पघता हुआ मखुमु तो पड़ता है, किन्तु साथ ही जलन, दाह, होटों पर पपडी, मूखापन व्रथा पित्तयिकार उत्पज्ञ हो जाते हैं । मदाब्रिमैं अन्नषचिनकौ क्रिया बजा शिथिल हो जाती है, येटपर अकार मालूमहोता हैं. सिर सदाभारी नु रहता है, हाँसी, कफ, पित्त. मुहमैं लाम्बा। आब 1 शरीर-पीडा तथा स्यनकी ओर प्रवृत्ति सदा बनी रत्ती है । स्थायी रूपसे अपच रहते रहते यह रोग हो जाता है । इस रोगकै लिये पृन्द सिद्ध' यौगपै हिगुलवाषेफला-त्रिधिख गोलीका सेवन बताया है । क्षीर त्स्त-लेख ( २५1३-५५ ) मैं एक विशेष न्र्णका रखके तिथे उल्लेख किया है जिसके सैवनहुंमनुन्य शतायुको प्राप्त करता हुआ निरोग रहता है। अपच वहुत अधिक जल पीते बल्ले, अनि- गु यक्ति समय पर भोजन करने से, बुधा अथवा अग्य प्राकृतिक बियाओंका अवरोध करनेके असमय सोनेसे क्या हो सकता है (माधष श्री है स्सके सामान्य लक्षण आलस्य, भारीपन, पेट पृ फूलना, मलावरोघ इत्यादि हैं । फफदोंपसे आमदोषका प्रादुर्भाव होता है । इससे गाल तथा पलक सूज जाती है, जानेके साधहीं मशि-त्रिश उत्पन्न होने लाटा है । विदग्ध दोने पित्त उत्पन्न होता है । इसमें तु'पाकौ अधिकता, भूखों खेद, क्या आहि होते है । ( शर्मा: ९९-३ सुश्रुत ६'५६`१…) भयंकर अपच होनेसे भी मूहाँ, उन्मत्तबात्त, क्या, आलस्य. सिर बना इत्यादि विकार होने लगतेहैं । इसीसे पिसृपिका, अस्सक, मला' सू व्ररोध, (हैगज्यर इत्यादि भयंकर रोग तक उत्पन्न हो सकते हैं । थत: आरम्भ ही से गडी साध- धानीसे रहना चाहिये । इस सम्बन्धमें विशेष क्योंरेकै लिये 'अधिमान्य' पर लेब देखिये हैं क्या ८-५! माघा ९१-६ पा० १८५द 1१३, भा० २-२-२५ अपदानंर्णसनामका पाली भाषामें एक ग्रंथ है । इसमे दुद्धकालके वीद्धश्वम्प्रदायकै "९५३ पुरुष तण ४० स्थिमीकै जीवनत्रखि दिये मुए हैं। यद्यपि यह ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ है, तथापि थेरो गायकी टोकामैं ( [९तीप२तों 3311- 1९४३८ ९८1६८९०४1 ) दृसमैं कौ ४० जीवनी उतारी गई है । उसमें हँसाकै पूर्वकौ तीसरी शताब्दोंकै

तिस्स रचित "कथा यब मंथका उल्लेख मिलता

है: इत्ती यह प्लातासकता हैकि बोद्धके बावरी मंथीमेंसे एफधदृभीहैं । इसके लिये आप प्रमाण भी प्राप्त होते हैं । दीर्षनिकादृमैं ऐतिहासिक सुद्ध से पहले मृ: वुदौका षणन मिलहुंग है । इहुकै बादके ग्रंयोंमें कुसमी संख्या हैं यद्यपि यह ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ है, तथापि थेरो गायकी टोकामैं ( [९तीप२तों 3311- ९४३८ ९८1६८९०४1 ) दृसमैं कौ ४० जीवनी उतारी गई

है । उसमें हँसाकै पूर्वकौ तीसरी शताब्दोंकै 

तिस्स रचित "कथा यब मंथका उल्लेख मिलता है: इत्ती यह प्लातासकता हैकि बोद्धके बावरी मंथीमेंसे एफधदृभीहैं । इसके लिये आप प्रमाण भी प्राप्त होते हैं । दीर्षनिकादृमैं ऐतिहासिक सुद्ध से पहले मृ: वुदौका षणन मिलहुंग है । इहुकै बादके ग्रंयोंमें कुसमी संख्या इसका तिफाकार वुद्ध्घोष रहा होगा। ‘सुमंगल धिजालिनी७धिसे पता पलता हैष्टि दोय चालोका अत था कि अवदान ग्रंथ 'अमि- धार्य पिटक‘ मैं का है, किन्तु मस्मिम यासोंका कथन था कि यह "सुतास पिटक’ मैं से है । शन दोनों सम्प्रदार्योंर्मे जो मतभेद देख पशुता है इससे भी यछ निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यह ग्रंय रादका है । अपदानका अर्थ " शुद्वाषरण, णफमै ' इस्याट्टि लेता दूँ। ५यहुणु अपादानो मे नायक तथा नायिकाके वर्णनकै पहले उनके जन्मका इतिहास दिया देख पड़प्तादै. ठदृन्तर उनका वर्धमान वणित रहता है । आप: यह कहा जा सकता है फि अश्मानं जश्र्वकसै ही समान वर्तमान तथा यूर्यकाख्या पुराण होता है भेद केवल इतना ही होता है कि जातकों किसी शु क्या पूर्व इतिहास दिया रहता है ओर अश्याम मैं अधिकतर 'आहेत' का बाएँन देचूपद्भता है । खाकी पहली शतान्दीमें जब बौद्ध संस्कृतमे ग्रंथ रचते ये तो उस समय तो थे कथायें लोफ- प्रिय थीहीं, कैत्रल "आदाभ१ कासंरुकृत माम ‘अवदान' पड़ गया । आधुनिक समयमे पट्ससे अण्ड" मिध मिध भाषाओमैं अनुवादित देब पड़ते हैं 1 संस्कृत, स्थिती, चीनी भाषामें अनेक के अनुयादहीं चुकें है । इनकी 'अवदान-शतक क्या दिव्यावदान है प्रसिद्ध हैं । इन अत्रदानोंपै किसी अपदानसे कोई कथा'अव्ररशा नहीं उतारी