पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२७९

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दुसरी महत्वपूर्ण पात जों ध्यानमें रखने योग्य है वह यह है फि यहाँकै स्थानीय न्यायालय वहुत से ष्यक्तिवोंकें सावन्धर्में 'आकल्प’ का फैसला नहीं दे सकते । उनकों स्वयं हीं यह अधिकार प्राप्त नहीं दै । एक राजाके विरुद्ध दूसरे राजाके कृलौका निर्णय करनेफा अधिकार यहाँ की दीवानों अदाखर्तोंकौ नहीं है 1 वृटिश सरकार का किसी राज्य बिशेषके साथ जो कृत्य दीसा है, उसपर भी यहाँके न्यायाक्तय बिचार नहीं कर खुफते । यदि किसी राजाकौ गवर्नर-जनरल हन कोंसिलुगे पदच्युत कर दिया हो तो स्थानीय प्यायाखय उसपर बिचार करनेका अधिकार नहीं रखते । गवर्नर-जनरल, गवर्नर, तथा कौन्तिख ओर असेम्यलीकै सदरुर्योंकै निरुद्ध भी, उन कुलों के लिये जो उन्होंने उस पदकों हैसियतसे किये हो, बिचार करनेफा अधिकार यहाँकै न्यायालयों को नहीं है।

[ अपनि, वायु तथा प्रकाश, मंथक्रर्तत्व (copy right) गुस्यादि अंपकृरर्व'ग्लै विशेष उल्लेखकै लिये पुच्चहीं

शब्दों पर लिखे हुए लेख देखिये अपच…यद्धृ रोग पाचाशिशक्तिसे अधिक ब्रश पेटमे पहूँचनेसे उत्पन्न होता है 1 प्रत्येक मनुष्यकी पा-शक्ति , खास्था, स्वभाव तथा प्रकृति भिन्न भिशदोतीहै 1 जो अक्ष और जिस परिभाणमें एककों अपच कर सकता है, दूसरेको उससे और हुंतने ही से ब्रहेर्रहुँगृ हानि ड्डाहुँर्रे भी रत्ती, किंतु फिर भी धदुठसे ऐसे पदार्थ है जो प्रत्येक मनुष्य को पाचनशक्तिपने शिथिल करते हैं, षदुतसे ऐसे नैसर्गिक नियम हैं जिनको उलंघन करनेसे पाचन- राक्ति हीन होती जाती है । जो मनुष्य अमल: में साथ तथा द्दष्टपुदृ होते है उनको तो इसका प्रभाव बहुत धीरे धीरे पड़ता है, किन्तु होता अवश्य है । ओर यदि निरन्तर ही इस और उपेक्षा करते रहते है तो अन्तमै थे भी अपषसे पीडित हो जाते हैं । किंतु जो मनुष्य समानता ही कमजोर होते हैं, उनकी तनिक भी असाव- धानीसे हानि उठानी पड़ती है : अधिक चटपटे मसालेदार तथा वाहोंस्यादफ भोजन करते रहने से धीरे धीरे मुरचनशक्ति शिथिल पड़ती जाती है। आमाशय क्रिया ठीक न होने ही से अपच हो जाता है । अधिक भोजन, बर्क, चाय, काफी, अद्य इत्यादिका' अत्याधिक सेवन इस रोगकै मुख्य. कारण हैं। अपच होने पर खाया हुआ आ। नियमित समयमे पत्ता नहीं है और पेदृमें 1 भारीपन माल-म हुआ करता है । जिस भाँति अति शारीरिक परिव्यय शरीरमैं थकावट आकर शिथिल हो जाता है, उसी भाँति भूले प्याले षटुत परिश्रम करके भोजन क्लोसे भी अजीर्ण हो जाता है लक्षण-मजिनके थोडी देर पश्चात् पेट फूलने लगता है जिससे मनुध्यकौ बेचैनी होने लगती है है अभी कभी पेटमें पीया भी होने लगती है है रात्रि के भोजनके यआसूषेसे रीमीकौ व्यवस्थित रूप से निद्रा नहीं आती, केवल तंद्रा रहती है । मोही थोडी देंरमे गोद खुलती रहती है, घराना खान द्देखा कहुँटा है 1 नोंदृ खुतृने पर मुख सूखा रहता है। होठ पर पपडी जमीरहती है । मन्दमाए शिरमैँ पीड़ाका ध्याभब करता है । द्ददयफी गति अनियमित रहती है । प्राहिकाल सोकर उठने पर भी आलस्य बना रहता है, युखका खाइ बिगडा रस्ता है । कभी वमनकौ प्रवृत्ति होती है जिसमें ब्रहा क्ति तथा खाया पुआ ब्रश निक. लता है । कभी कभी भनुप्यकौ इससे क्या आने लगते हैं ।उपचार-यहि अषचकें लक्षण सदा टी वर्त्तमान रहे तो समझना चाहिये कि रोगीको मन्याष्टि हो गयी है । आरम्भमें अपच पर ध्यान न देने ही से यह रोग उत्पन्न हो जाता है । इसका सुण कारण है आजकलका अनियमित नागरिक जीवन अनियमित आहार. विहार, शोक, चिंता. पास तथा नैसर्गिक नियमीका उल्लंधन हींइसका मुख्य कारण हो रहा है। प्रथम तो यह निश्चय कर लेना आवश्यक है फि अषचकै अतिरिक्त किसी और भी रोगकां ५ समावेश तो नहीं है । तदनन्तर यह देखना चाहिये फि रोगीने क्या जाया पिया है । केवल साधारण अपच तो भोजन न करने हीं से साभा- विक रीतिसे ही अच्छा हो जाता है, किंतुयांदे रोगीको पैटमैं अधिक पीड़? हो, चित्त घवराटा हो तो ऐसे उपाय करने चाहिये जिससे रोगीयों वमन हो जाने : गरम जलमें नमक डालकर पीने से सरलताबिपूर्वक धमृपृ हो जाता है । आधिक प्यास लगने पर चपदैके टुकडे देना चाहिये जब तक अपचकै सब लक्षण शान्त न हो जायें हैं भोजन कदापि न करना चाहिये । निनाआचं श्यता हुए ही चूरन इन्यारिका सेवन न करना चाहिये दृ थायुहैक्ति हान-माँधरकै हस्त लिखित ग्रंथों ३ मैं ( १'१० ) खटरामिकै चार भेद कहे गये हैनं…- है ) मद, (२ )सीदण, (३ ) विषम तथा (४)