पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/४०

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कि ओपलो अक्टिअमकी पूजा उसीने शुरू की। ईसा के जन्म से प्रायः तीन वर्ष पूर्व वह अकरनेनियाके अधिकार में चका गया।अगस्टस नामक पहले रोमन बादशाने मार्क अन्टनी(इस्वी सनके ३२ वर्ष पूर्व)पर यहीं विजय प्रप्त की थीं। इसीलिये यह स्थान प्रसिद्ड है।

   अक्रा-सीमा प्रान्त के बन्नू जिलेका एक प्राचीन स्थान। ऊ० आ ३३ पू० दे० ७०३६। यह स्थान बन्नू नागरके पास ही है। काबुल के राजा के नाती रुस्तमकायह मुख्य स्थान था।रुस्तम की वहन को यह भाग स्त्री-धनके रूप में मिला था।युनान और पस्छिम एशिया के जडाऊ कामों के संदेश जडाऊ मानिक यहाँ पर पाये गये थे।
 अक्रा-(अफ्रिकन)आफ्रिका के पष्छिमी किनारे पर गिनीकी खाडीके पास "गोल्ड कोष्ट"नामक एक ब्रिटिश उपनवेश है। उसमें अका शहर और बन्दरगाह है। यहाँकी जनसंख्या १० हज़ार है,जिसमें १५० यूरोपियन हैं। यह गाँव सेंट जेम्स, केव्हेकुर और क्रिक्श्वर्ग इन तीन किलों के आस पास बसा है।इन किलों में दूसर और तीसर क्रमशः हालेराड और फ्रंस के आधिकारमें था। परन्तु ये किले बादमें अंग्रेज़ों के हाथ आए।यहां कोको(cocoa) के वाग हैं।
  अक्रूर-आयु पुत्र नहुष राजा का पौत्र यदु था।इसी कुलके सात्वतवंश में कोष्ट था।उसका वंशज था।अक्रूर उसी पुत्र था।इसके उग्रेसेना स्त्री से सुदेव और उपदेव नामक दो पुत्र हुए।यह वसुदेव और क्र्ष्णा का सभ्हलीन था। इसने अपनी एक कुमारी नामक बहन का वसुदेवसे ब्याह किया था। क्रिष्णा को मथुरा लानेके लिये कंसने इसीको गोकुल में भेजा था।स्यमन्तका मणिसे इसका बहुत सम्बन्ध है।
  सूर्यापासना करने वाले सत्राजित को यह स्यमन्तक मणी सूर्य से प्रप्त हुई थी।सत्राजितने यह अपने भाईको दी। उसके पास स्यँमतकके लिये क्रिष्णा ने याच्ना की थी।परन्तु वह क्रिष्णा को नहीं मिली। अक्रूर भी उस मणिको चाहता था। उसने भोजाधिपति शतधन्वी द्वारा सत्राजितका बध करा कर स्यमंतक मणि प्रप्त की। शतधन्वी द्वरा सत्राजितके मारे जानेकी खबर पा कर क्रिष्ण ने उसपर चढाई कर दी।शवधन्वीने मद्द्के लिये अक्रूर की प्रतीक्षा की; परन्तु प्रत्यक्ष विरोध होगा यह सोच कर वह मद्द के लिये नहीं पहुँचा। अन्त में क्रिष्णा ने शतधन्व्रीका वध किया।इसके बाद क्रिष्णा को मालूम हुआ कि शतधन्व्री  स्यमंतक मणी आक्रूरको दे दी और अक्रूरने ही इसके द्वरा सत्रजितका वध करवया था। पीछे उन्हें यह खबर भी मिली कि अकुर द्वरिका छोडकर चला गया।क्रिष्णा ने यह सोच कर कि अक्रूरको दराड देनेसे जाति में विभेद पैदा होगा,उसे क्षमा कर दिया और फिर द्वारिका में बुला लिया।
   
   अखाकोप-अष्टी के उत्तर-पक्षिम ४ मीलपर तथा तासगाँव से पक्षिमकी और ११साल पर है। यहाँकी जनसंख्या लगभग तीन हज़ार है। क्रिष्णा नदी जिसे जगह पक्षिम से दक्षिण की किनारे पर यह गाँव बसा है। यहाँ से लोग दूसरे किनारे के गिल-वाडी गाँव में क्रिष्णा नदी पर बने हुए पुल पर से होकर जाते हैं।तास गाँव तथा अष्टी जानेके लिये कच्छी सडक है। यहाँ पर क्रिष्णा नदीकी कली मिट्टी होनेके कारण यह गाँव बडा उपजाऊ है और यहाँ खेती के लायक जमीन भी बहुत है। यहाँ दत्तात्रेय यथा म्हसोबके दो मन्दिर हैं। दत्तात्रेयके मन्दिर में तीन बार मार्गशी पूर्णिमा को माघ वदी पंचमी को,तथा आक्ष्विनकी दादशीको मेला लगता है। दत्तत्रेयका मन्दिर अखलकोप को देश्पाणडेने पहली बार बनचाया था।पक्षात क्षी क्र्ष्णा राव त्रिबक बातटने(आप उस समय वहीं के तहसीलदार थे)सन १५६७ ई० में फिरसे बनवाया मन्दिर अखलकोप के देशपाणडे ने पहली बार बनवाया था। मन्दिर में  दत्तत्रेयके खडाऊँ स्थपित है। देवस्थानके लिये ११ रु० १२ आ० कर की जमीन नियत कर दी गयी है। अखलकाप तथा जिलेके दूसरे-दूसरे भागके व्यापारी और संट साहकार इस देवस्थानकी द्रव्य दाग अथवा किसी अन्य रीतिसे सहायता करते हैं। यहाँ पर म्हसोबाका मन्दिर भी पहले गनेशजी का था।यहाँ अप्रैलन्में मेला लगता है और मेले में डाँम,चमार,रमोशी चमार तथा मरठों ही की संख्या अधिक रहती है। म्हसोबाके मन्दिरों में जो ज़मीन दी गई है,उस पर साकारी कर १३०रु० है। कुल जमीन से करीब ५०० रु० की आमदनी होती है।नि
  अख्रोट-स्ंस्कृत नाम अक्षांट।दूसरे नाम आखरोट,आखोर,काअल और दून। इसका पेड ग्रीस,अर्मीनिया,अफगानिस्तान के पहाडी प्रदेश,अफगानिस्तान से लेकर भूटान तक के प्रदेश,हिमालय के चायव्यभाग,बर्मा के पहाड और खासिया के पहाडों पर होता है।