पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अगर ज्ञानकोश (अ) ३२ अगरतला जाति इससे बहुत मिलती-जुलती है। किन्तु तक नहीं हुआ है। अगर और बर्जरियाकी मुख्य अगमुदैयनोंका ब्राह्मणोंसे विशेष सम्बन्ध है। वे सड़कसे कुंकज किलेका खगडहर दिखाई देता है। ब्रह्मणोंको उपाध्याय बनाते हैं तथा वेल्लाडों की यह किला बड़ा प्राचीन है। तरह जन्म, लग्न, तथा ओर्ध्व-दैहिक संस्कारीका [बाम्बे ग० भाग ६] पालन करते हैं। जिस साँति ब्राह्मणोंमें गोत्र । अगर (शिन्देशाही)- मध्य आरतमें ग्वालियर श्रादिका विचार विवाहमें होता है, इनमें नहीं होता। राज्यान्तर्गत राजपुर जिलेका एक कस्था तथा साधारणतः मरवन् पिता तथा अगमुदैयन माँकी छावनी है। यह समुद्र की सतहसे १७६५ फुट सन्तति अगमुदैयन ही समझी जाती है। किन्तु की ऊँचाई पर है। उज्जैनसे ४१ मीलकी दूरी पर यदि पिता अत्यन्त योग्य तथा ख्यातिवाला हो तो यह बसा हुआ है। यह उत्तर अ० २३४३' तथा सन्तान भी मरवन् कहलाती है। सामान्यतः पूर्व देशा० ७६०१' पर स्थित है। इसकी जनविवाह युवा होनेपर ही होता है। विवाह पक्का संख्या लगभग ११००० है। यह दो तालाबाके करनेके समय जन्मकुण्डली देखते हैं। विवाह वीचमै बसा हुआ है और इसके चागं और चहारकी रीतियाँ अन्य जातियोके ही समान है। मृतक दीवारी है। अग्रा भिल्लने दसवीं शताब्दीम इसे जलाये जाते हैं और और्ध्व-दैहिक संस्कार भी | बसाया था। अतः इसका नाम भी उसीके नाम होता है। | पर पड़ा। तत्पश्चात् वह झाला गजपूताके हाथ अगमदैयन शैव होते हैं। ऐयनर, पिडारी में आ गया। १८ वीं शताब्दिम धाग्के यशवंत तथा करूपन्न स्वामी श्रादि अनेक छोटे छोटे देवता गव पवाग्ने इसे जीत लिया किन्तु १८०१ ई. में ओंकी भी ये पूजा करते हैं। मध्य प्रान्तके राय- | वाबूजी सींधियाने इसपर चढ़ाई करके इसे उजाड़ पुर, जबलपुर इत्यादि स्थानों में इनकी कुछ कुछ डाला। फिर इसे दौलतगव सीधियाने बसाया। बस्ती मिलती है। पहले मद्रासी पल्टनों में स. १६०४ ई० में अगर जिलेका यह मुख्य केन्द्र भरती होकर ये यहाँ आये थे। उन्हींम से जो था। यहाँ अनाज और कपासका बड़ा व्यापार पेंशन लेनेपर यहीं रह गये, उनके ये वंशज हैं। ये होता है। यहाँ एक कचहरी, एक स्कूल, एक अपने नामके आगे 'पिल्ले लगाते हैं। इसका पोस्ट आफिस और एक दवाखाना है। रटरिया अर्थ इनकी भाषामें 'राजपुत्र' है। अतः बड़े लोगों तालाबके दूसरी ओर सेनाके रहनेका स्थान है। के नामके आगे यह शब्द लगाकर ही उन्हें सम्बो यहाँ सन् १८५० ई० में संधियाकी मदद के लिये धित किया जाता है। इनकी कुछ बस्ती कोचीन सेना रक्खी गई थी। राज्यान्तर्गत चित्तर ताल्लुके के पूर्व भागमै भी [इम्पी० ग० १६०८] मिलती है। अगरगाँव-यह भीमाके तट पर बसा हुआ [थर्स्टन-कास्ट एण्ड ट्राइबस श्राफ सदर्न इण्डिया; एक गाँव है। यह इन्दीके उत्तर पूर्व लगभग रसेल तथा हीरालाल-कास्ट एण्ड ट्राइब स श्राफ सेन्ट्रल १५ मील पर स्थित है। गाँवके दक्षिण एक प्राविन्सेज-सेन्सज़ १९११ रिपोर्ट ] प्राचीन शंकरलिंग देवताका मन्दिर है। गाँवमें अगर-रेवाकाँठा एजन्सीमें सांखेड मेहवा "धैगपनागुड़ी" नामका एक दूसग हेमाडपन्थी नामक एक राज्य है। उसके २७ छोटे छोटे उप- मन्दिर है। इस मन्दिरमें शक ११७२ का एक विभागों में से एक यह भी है। चौहानराज्यसंघ शिलालेख देख पड़ता है। जनसंख्या लगभग के आठ भागोंमें से यह भी एक भाग है। इस ४००० है। राज्यके सम्बन्धमे १८७६ के बम्बई गजेटियरसे अगरतला-टिपेग गज्यका मुख्य नगर । निम्नलिखित बातोका पता चलता है। यह उ० अ० २३५१ तथा पू० देशा० ५१२१ पर संघ-चौहान, राज्य-अगर, गाँव-२६ चौरस-१७मील स्थित है। सन् १६०१ ई० में यहाँकी जनसंख्या उत्पत्ति १०००पौ०गैकवाडको कर १८ पौ० १२ शि० लगलग ५१३ थी। प्राचीन नगर 'होग' नदी अगरके उत्तरपूर्वमें वनमाल, दक्षिणमै काम- के पश्चिम तट पर बसा हुआ था किन्तु नया शहर सोली और पश्चिममें बार्जरिया है। यह सांखेड पूर्वीय तट पर बसा हुआ है। १८७४-७५ ई० मेहवाके मध्यमें स्थित है। कुछ भागकी मिट्टी में यहाँ म्यूनिसपैल्टी स्थापित हुई। १६०३-४ ई में चिकनी है और कुछ की रेतीली है। यहाँ कपास, यहाँकी श्राय ६७००) थी और व्यय ७४१०) था। ज्वार, तिल, चावल, और चनेकी खेती होती यहाँ एक कालिज, एक टेकनिकल स्कूल, एक है. किन्तु खेतीकी व्यवस्थामें ठीक ठीक सुधार असी । संस्कृत पाठशाला, एक दवाखाना तथा जेल श्रादि