पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/६३

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कहे हुए दन्ड्का विधान करे। गुरु पत्नीगमन करने वाले, सुरापान करने वाले चोरी करने वाले, ब्रह्म्हत्या करने वाले मह्त्पातकियोको अनुक्रम से भाग सुरापान अवपादके चिन्ह उनके मस्तक पर बनाने चाहिये। आगे श्लोकोसे ऐसा अनुमान किया जाता है कि यह दन्ड ब्राह्ररोको ही दिया जाना चाहिये। क्योकि आगेके श्लोकोमै (शुद्रदीनबघातयेत राजा पापव्निप्रान्प्रवासयेत॥ महापातकी नावित व्रुनयोपपादयते।) राष्ट्रमे नियत किय हुए अधिकारी या सामन्तोसे मिलकर चोरी करने वाला चोरो के और से उनसे मिल जाने वाले अधिकार्योके हात काटने चाहिये अथवा सुली पर चढाना चाहिये। गावो मे जो चोरोको वेतन देते है अथवा घूस देते है उनहे उपर लिखे द्न्ड देने चाहिये। तडाग, देवालये, आगार तथा राजमार्ग भ्रष्ट करने वालेको द्न्ड करना चाहिये। मासिककर समये पर चुकाने वाले को ५०० पैसो का दन्ड देना चाहिये। समके साथ जो बिश्म चालता है उसे "मध्यम"दन्ड देना चाहिये। व्यापारियोसे घूस् लेकर अवरोध करनेवालो के लिये भित्र-भित्र प्रकार से "उत्तम' दन्डकाविधान होना चाहिये। द्रव्यको दोश देने वाले और प्रतिच्धन्द (?)बेचने वाले इन दोनो को "मध्यम" द्न्ड करना चाहिये। असत्याभाशि, कपटी,झुटी शिक्शा करने वालो को दुगना दन्ड करना चाहिये। अभद्ये भक्षा करने वाले शुद्र अथवा ब्रहायको को क्रुश्नाला दन्ड करना चाहिये। कम माप करने वालोको और थोडा तौलने वालोको "उत्त्म" शिक्षा देनी चाहिये। विष देने वाली अग्नि, पति, गुरु विप्र अपत्य का नाश करने वाली अथवा उनको फसानेवाली स्त्री के नाक, कान, हात, होथ तोड कर गायके साथ निकाल देना चाहिये। खेत, घर, गाव,बन इत्यदि का नाश करने वाले अथवा राज्स्त्रीयो से गमन करने वालो को कश्टाग्निसे जलाना चाहिये। राज़ाज्ञामें अधिक करनेवालेको और पारदारिक को "उत्तम" द्न्ड्का पात्र है। न्याय से जीतने पर भी अपनेका जो अजित कहता है वह 'उत्त्म' दन्ड्के योग्य है। राजाको दन्वव्दयुद्धका आव्हान करने वालेको बध कि शिक्शा देनी चाहिये। अपराधी यदि द्न्ड करने वालेके हथोसे निकल भगे तो द्न्ड देनेवाला द्न्ड का पात्र होगा। इसके आगेके प्रकारोमे कुछ द्न्डोका और भी वर्गन है। युद्धा-यात्रा--श्र०२२८ से २३३ मै युद्धके लिये निकलने के पूर्व अथवा उसके बाद्के शुभा-शुभ चिन्ह्से जय पराजय निवर्य करना। श्र०२२८ मै युद्ध यात्रा योद्धा हुश्ट्-पुश्ट होने चाहिये। जिस देश मै भूकम्प होगा वह दिशा पराजय देने वाली होती है। उसी प्रकार केतुविश्यक शकुनो को जानना चाहिये। शरीर स्फुराव, सुस्वप्नदर्शक से राजाको जय प्राप्ति की आशा करनी चाहिय। ऋतुके अनुसार सेनाकी योजना वर्शाऋतुमे हाथी और पैदल जिसमे अधिक हो ऐसी सेनाकी योजना करनी चाहिये। हेमन्त और शिशिर (मर्गशिर्शसे फाल्गुन) मै रथ और घोडे जिसमे अधिक हो ऐसी सेनाकी योजना करनी चाहिये। वसन्त ऋतु अथवा शरद ऋतुमे चारो प्रकारकी सेनाकी योजना करनी चाहिये। सेनामै विशेश्ता पैदल अधिक होनी चाहिये। युद्ध और शकुन- श्र०२२६ मै स्वप्न, शुभ शुभ दु:स्वप्न शान्ति। श्र०२३८-३२ मै शकुन के छ: प्रकार वर्गित है। समय, देश, दिशा, कारवा, शब्द और जाति ये शकुन उत्तरागेत्तर अधिक फल देनेवाले है। श्र०२३४ मै पाडगुवय-साम, भेद, दाम द्न्ड इसका पहले उल्लख किया ही जा चुका है। उसमे स्वदेश द्न्ड्का कुछ वर्गीय दिया है। द्न्ड्के 'प्रकाश' और 'अप्रकाश' दो भाग है। उसमे से लुट-पाट गाव की नुकसानी, अनाजाका हवा, अग्नि इत्यादि प्रकार पहिली तरह के है और विपप्रयोग, आग गुवडोसे पिटवाना अच्छा पानी बिगाडना, ये दुसरे प्रकाग्केहै। युद्धमै शामिल होने के पूर्व युद्ध से क्या हानि होगी इसका राजा को पूर्व विचार करना चाशिये। नुकसान अथवा अनर्थ होना सन्भव हो तो शत्रु से सन्धि करनी चाहिये। जहा तक सम्भव हो अधिक अर्थ व्यय वाले दान ऐसे समय न करना चाहिये। शत्रुसे कपट निम्मलिखित प्रकारसे करना चाहिये:-शत्रुके शिविरमे एक मोटे पकक्शि के पूछ मै जलती लकडी बान्धकर छोड्ना चाहिये, इसे शत्रु उल्कापात समभात है,और उसमे शन्का और भय का सच्चार होगा। उल्कापात बडा अशुभ माना जाता था। इस प्रकार अनेक उत्पात शत्रुओको