पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/९८

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ई० में मुगल राज्य की श्रवनतिके समय फिरसे मारवाङके राजा जसवंतसिंह् के पुत्र श्रजितसिंह के स्वाधीन हो गए कुछ वर्शोंके बाद अजमेर का किला तथा प्राँत मराठाओं के अधिकार में गया। अंत में दौलतराय सींधियाके हाथ से १७५७ ई० की जुलाई मे यह राज्य अंग्रेजों के हाथ लगा।

     प्राचीन इतिहास की दर्शनीय इमारतें अथवा प्राचीन चीजें तथा स्थान अजमेर और पुश्कर छोडकर शायद ही कहीं है। अजमेर प्रांतके दक्षिड्पूर्व भागमें बहुत पुराने मंदिरो के अवशेश दिखाई देते है।
 १६०१ ई० के मदुर्मशुमारीके अनुसार (अजमेर २६७४५३ तथा मारवाङ २८६४५६ अजमेर मारवाङ की आबादी ४७६६१२(१६११ में ५०१३६५ और १६२९ में ४६५२७१)थी। यह १९६१ ई० से बहुत कम है और इसका कारण बराबर आकाल पडना है। प्र्त्येक वर्श मील के पीछे १९६ आबादी थी। वही सन्न १९६१ ई० में २०० थी। इस प्रान्त में ४ बडें शहर तथा ९४० गाँव हैं। जन स्ंख्या के मानसे पुरुशों का प्रमड ५२६ प्र्तिशत है। १६०१ में निम्नलिखित स्थिति थी।
              तोटल             पुरुश             स्त्रियाँ


अविवहित २०६३३८ २१३६५३ ६२३६५

विवाहित २३२६२० ११६४५१ ११६५६६

विधवा/विधुर ६७६५४ २०६१४ ४७०४०

         छोटे लड्कों की शादी की प्रथा कम है। दो या अधिक स्त्रियाँ करने की प्रथा बहुत नहीं है। उच्च जाति की स्त्रियों का दूसरा विवाह नहीं होता। मुसलमानों में तलाक देने की प्रथा प्रच्च्लित है। जाट इत्यादि जातियों में विधवा विवाह प्रचलित है। मारवाङ में जायदाद माँकी ओर से मिलती है। छोटी लडकियाँ को मार डालने की प्रथा कहीं नहीं है।
      यहाँकी भाषा राजस्थानी तथा हिंदी है। लोग उद्योगी तथा उत्तम आचार व्यवहार वाले हैं परन्तु श्रकालके समय मारवाड के मोर तथा अजमेर के भिन्न जाति के लोग डाका डालते हैं।
       यहा हिंदुओ के बाद मुसल्मानों की जनसंख्या है। यहाँ के हिन्दु वैश्डव,शैव, तथा शाक्त तीनो प्ंथोके हैं। प्रतिशत ५५ आदमी खेती पर अपनी उपजीविका चलाने वाले हैं,कुछ लोग जुलाहों का तथा चमङा कमाने का काम करते हैं। उच्च हिन्दु वर्ग के लोग अधिकतर शाकाहारी हैं।
    शहरों में मकान पत्थरों के बनें होते हैं परन्तु गाँवों में मट्टोके होते हैं। श्रारोग्यताकी छप्ति से वहाँ के मकान अच्छे नहीं हैं। कबड्डी,कुश्ती, पटाबाजी,कुश्ती आदि यहाँ के खेल हैं। आजकल क्रिकेट,फुटबाल आदि अंग्रेजी खेलों का भी समावेश होने लगा है। 
     होली,दिवाली,विजयाद्शमी और तेजाजि का मेला इत्यादि यहाँ के हिन्दुओं के मुख्य त्योहार हैं। यहाँ व्यापारी लोग गारागौर नामक एक त्योहार मनाते हैं। पार्वती देवी अपने पिता के यहाँ वापस आने का यह मेला होता है। तेजाजी क मेला जाटोंका उत्सव है। तेजाजी नामक एक जाट योधा हो गया है।
  यहाँ की खेती की स्थिती सन्तोषजनक नहीं है,क्योंकि यहाँ कि मट्टी उपजाउ नहीं हैं। बहुतसे टीले,चट्टानों सब ओर फैली है। यहाँ व्रिश्टी बहुत कम है और श्रनियमित होती है। इस कारन जमीनमें खाद अधिक डालनी पडती है।
       गेंहुँ,ज्वार,मक्का,कपास इत्यादि यहाँ की मुख्य पैदावार है। पुश्कर नदि के पास ऊख की खेती की जाती है और तङगोङ तहसील में अफीम के पौधे लगाएँ जाते हैं। एक जोङे में और दूसरी वसंतऋतुओ में-दो फसलें होती हैं।
     जमीन की लगान पैदावार के रूप मे दी जाती है। पैदावार के १/२ से २/३ तक मालिक को लगान मिलता है। कुछ स्थानो पर लगान धन के रूप में देते है। मजदूरों को मजदूरी दो आने से चार आने तक दी जाती है। कारीगर,बढाई,लोहार इत्यादि को चार आने से आठ आने तक होती है। देहातो में मजदूरों को अनाज देने की प्रथा है। शहर मे मध्यम श्रेङी के लोग खाने पीने से खुशहाल है,परन्तु किसानो की दशा श्रमो तक सुधरी नहीं है।
      कमजोर मारवाड की चट्टानों में धातुओ की अनेक खानें हैं। अजमेर के उत्तर के पहाङो में लोहें और ताबेंकी खाने हैं और तारागड के पाहाडों में सीसा पाया जाता है।
     अजमेर में कला अथवा अन्य प्रकार के काम विशेश उल्लेखनीय नहीं हैं,मारवाङ की बात ही छोङ् दीजिएँ। कहीं कहीं करवा पर कपङा ,और हाथी दात और लाखकी चूडियाँ बनती हैं। अजमेर के जेल में दरियाँ और कालोन बनते हैं।
         इस प्राँन्त की राज्य व्यवस्था कमिशनर करता