पृष्ठ:Hind swaraj- MK Gandhi - in Hindi.pdf/१०

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पुरानी सभ्यताका इन लोगोंने पुरस्कार किया, इसलिए आपका ‘हिन्द स्वराज्य' पढ़नेसे यही ख़याल होता है कि आप भूतकालको फिरसे जाग्रत करनेके पक्षमें हैं। आपको बार-बार कहना पड़ता है कि आप भूतकालके उपासक नहीं हैं । मानव-जातिने गलत रास्ते जितनी प्रगति की उतना रास्ता पीछे चलकर सच्चे रास्ते पर लगनेके बाद आप फिर नीतिनिष्ठ,आत्मनिष्ठ रास्तेसे नई ही प्रगति करना चाहते हैं। तो:

"आपका जीवन-कार्य करीब करीब समाप्त होने आया है। भारतका स्वराज्य स्थापित होनेकी तैयारी है। ऐसे समय पर आप फिरसे अपने जीवनभरके अनुभव और चिंतनकी बुनियाद पर ऐसी एक नयी ही किताब क्यों नहीं लिखते, जिसमें भविष्यकी एक हजार सालकी महामानव संस्कृतिका बीज दुनियाको मिले?" वे अपने कार्यमें इतने व्यस्त थे और बिगड़ता हुआ मामला सुधारनेकी प्राणपणसे चेष्टा करनेके लिए इतने चिंतित थे कि मेरी सूचना या प्रार्थना सुननेकी भी उनकी तैयारी नहीं थी।

अब जब गांधीजीका दुनियवी जीवन पूरा हो चुका है और उनके लेखोंका, भाषणोंका, पन्नोंका और मुलाकातोंका अशेष संग्रह तैयार हो रहा है, तब आदर्श-संस्कृतिके बारेमें और उसे स्थापित करनेके बारेमें गांधीजीके विचार इकट्ठा करके ऐसा एक प्रभावशाली चित्र किसी अधिकारी व्यक्तिको तैयार करना चाहिये, जिसे हम ‘हिन्द स्वराज्य' की परिणत आवृत्ति नहीं कहेंगे; उसे तो स्वराज्य-भोगी भारतका विश्वकार्य या ऐसा ही कुछ कहना होगा।

जो हो, ऐसी एक किताबकी बहुत ही ज़रूरत है।

इसके मानी यह नहीं कि वह किताब इस ‘हिन्द स्वराज्य’ का स्थान ले सकेगी। इस अमर किताबका स्थान तो भारतीय जीवनमें हमेशाके लिए रहेगा ही।

१ अगस्त, १९५९

काका कालेलकर