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नई आवृत्तिकी प्रस्तावना

['हिन्द स्वराज्य'की यह जो नई आवृत्ति प्रकाशित होती है, उसके दीबाचेके तौर पर ‘आर्यन पाथ' मासिकके ‘हिन्द स्वराज्य अंक'की जो समालोचना मैंने ‘हरिजन' में अंग्रेजीमें लिखी थी, उसका तरजुमा देना यहां नामुनासिब नहीं होगा। यह सही है कि ‘हिन्द स्वराज्य'की पहली आवृत्तिमें गांधीजीके जो विचार दिखाये गये हैं, उनमें कोई फेरबदल नहीं हुआ है। लेकिन उनका उत्तरोत्तर[१] विकास[२] तो हुआ ही है। मेरे नीचे दिये हुए लेखमें उस विकासके बारेमें कुछ चर्चा की गई है। उम्मीद है कि उससे गांधीजीके विचारोंको ज्यादा साफ समझनेमें मदद होगी। -म॰ह॰दे॰]

महत्त्वका प्रकाशन

‘आर्यन पाथ' मासिकने अभी अभी ‘हिन्द स्वराज्य अंक' प्रकाशित किया है। जिस तरफ ऐसा अंक[३] निकालनेका विचार अनोखा है, उसी तरह उसका रूप-रंग भी बढ़िया है। इसका प्रकाशन श्रीमती सोफिया वाड़ियाके भक्तिभाव-भरे श्रमका आभारी है। उन्होंने ‘हिन्द स्वराज्य'की नकलें परदेशमें अपने अनेक मित्रोंको भेजी थीं और उनमें जो मुख्य थे उन्हें उस पुस्तकके बारेमें अपने विचार लिख भेजनेके लिए कहा था। खुद श्रीमती वाड़ियाने तो उस पुस्तकके बारेमें लेख लिखे ही थे और ये विचार जाहिर किये थे कि उसमें भारतवर्षके उजले भविष्यकी आशा रही है। लेकिन उस पुस्तकमें यूरोपकी अंधाधुंधीको भी मिटानेकी शक्ति है, ऐसा यूरोपके विचारकों और लेखक-लेखिकाओंसे उन्हें कहलाना था। इसलिए उन्होंने यह योजना[४] निकाली। उसका नतीजा अच्छा आया है। इस खास अंकमें अध्यापक सॉडी, कोल, डिलाइल बर्न्स, मिडलटन मरी, बेरेसफर्ड, ह्यू फॉसेट, क्लॉड हूटन, जिराल्ड

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  1. लगातार
  2. खिलना
  3. नंबर
  4. तरकीब