पृष्ठ:HinduDharmaBySwamiVivekananda.djvu/१४

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हिन्दू धर्म
 


समस्त अनुभव-राशि निहित रहती है; केवल प्रयत्न तथा उद्दमपूर्वक मंथन करने की आवश्यकता है। वे सभी अनुभव ऊपरी सतह पर उठ आयेंगे और पूर्व जन्मों की भी स्मृति जाग उठेगी।

पूर्व जन्म के सम्बन्ध में यही साक्षात् प्रमाण हैं। परीक्षा द्वारा ही किसी मतवाद की सचाई पूर्णतः प्रमाणित होती है। ऋषिगण समस्त संसार को ललकार कर कह रहे है कि हमने उस रहस्य का पता लगा लिया है, जिससे स्मृति-सागर की गंभीरतम गहराई तक का मंथन किया जा सकता है--उसका प्रयोग करो और अपने पूर्व जन्मों की सम्पूर्ण स्मृति प्राप्त कर सकोगे।

अतएव देखा जाता है कि हिन्दू का यह विश्वास है कि वह आत्मा है। "इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते, अग्नि दग्ध नहीं कर सकती, पानी आर्द्र नहीं कर सकता और वायु सुखा नहीं सकती।" हिन्दुओं की यह धारणा है कि आत्मा एक ऐसा वृत्त है जिसकी परिधि कहीं नहीं है, यद्यपि उसका केन्द्र शरीर में अवस्थित है; और मृत्यु का अर्थ केवल इतना ही है कि एक शरीर से दूसरे शरीर में यह केन्द्र स्थानान्तरित हो जाता है। यह आत्मा भौतिक नियमों के वशीभूत नहीं है, स्वरूपतः वह नित्य शुद्ध-बुद्ध-मुक्त-स्वभाव है। परन्तु किसी अचिन्त्य कारण से यह अपने को जड़ से बंधा हुआ पाता है और अपने को जड़ ही समझने लगता है।