पृष्ठ:HinduDharmaBySwamiVivekananda.djvu/६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
हिन्दू धर्म और उसका सामान्य आधार
 

साहस प्राप्त हुआ है और उसीसे मैं पृथ्वी की धूलि से उठकर अपने उन महान् पूर्वजों के निश्चित किये हुये कार्यक्रम के अनुसार कार्य करने को प्रेरित हुआ हूँ। ऐ उन्हीं प्राचीन आर्य की सन्तानों! ईश्वर करें आप लोगों के हृदय में भी वही गर्व आविर्भूत हो जाय, अपने पूर्वजों के प्रति वही विश्वास आप लोगों के खून में दौड़े,वह आप लोगों के जीवन का पूरा पूरा अंग बन जाय और उससे आप संसार के उद्धार के लिये कार्य करने लग जाय।

भाइयो ! ठीक ठीक किस बात में हम एकमत हैं तथा हमारे जातीय जीवन का सामान्य आधार क्या है, यह पता लगाने के पहले हमें एक बात स्मरण रखना चाहिये-जैसे प्रत्येक मनुष्य का व्यक्तित्व होता है, ठीक उसी तरह प्रत्येक जाति का भी एक एक व्यक्तित्व होता है। जिस प्रकार एक व्यक्ति कुछ विशिष्ट बातों में,अपने विशिष्ट लक्षणों में अन्य व्यक्तियों से पृथक् होता है, उसी प्रकार एक जाति भी विशिष्ट लक्षणों में, दूसरी जाति से भिन्न हुआ करती है। और जिस प्रकार प्रकृति द्वारा नियमित कार्य में किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति करना हरएक मनुष्य का जीवन-कार्य होता है, जिस प्रकार अपने पूर्वकर्म द्वारा निर्धारित विशिष्ट मार्ग से उस मनुष्य को चलना पड़ता है, ठीक उसी प्रकार की अवस्था जातियों की भी है। प्रत्येक जाति को किसी न किसी देवनिर्दिष्ट मार्ग से जाना पड़ता है, उसे संसार में एक सन्देश देना पड़ता है तथा कुछ न कुछ व्रतविशेष का उद्यापन करना होता है। अतः आरम्भ से ही

५९