पृष्ठ:HinduDharmaBySwamiVivekananda.djvu/९२

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हिन्दू धर्म
 


बल्कि ऊँचे आदर्श के अभाव के कारण ही, वैसा कर रहा है। यदि कोई आदमी असत्य की ओर जाता है, तो उसका कारण यही समझो कि वह सत्य को पकड़ नहीं पाता। अतएव, मिथ्या को दूर करने का एक मात्र उपाय यही है कि उसे सत्य का ज्ञान कराया जाय। उस ज्ञान को पाकर वह उसके साथ अपने मन के भाव की तुलना करे। तुमने तो उसे सत्य का असली रूप दिखा दिया--बस यहीं तुम्हारा काम समाप्त हो गया। अब वह स्वयं उस सत्य के साथ अपने भाव की तुलना कर देखे। यदि तुमने वास्तव में उसे सत्य का ज्ञान करा दिया है, तो निश्चय जानो, मिथ्या भाव अवश्य दूर हो जायगा। प्रकाश कभी अन्धकार का नाश किये बिना नहीं रह सकता। सत्य अवश्य ही उसके भीतर के सद्भावों को प्रकाशित करेगा। यदि सारे देश का आध्यात्मिक संस्कार करना चाहते हो, तो उसके लिये यही रास्ता है--एक मात्र यही रास्ता है। वाद-विवाद या लड़ाई-झगड़े से कभी अच्छा फल नहीं हो सकता। उनसे यह भी कहने की आवश्कता नहीं कि तुम लोग जो कुछ कर रहे हो, वह ठीक नहीं है--खराब है। आवश्यकता तो इस बात की है कि जो कुछ अच्छा है, उसे उनके सामने रख दो; फिर देखो, वे कितने आग्रह के साथ उसे ग्रहण करते हैं। मनुष्यमात्र के अन्दर जो अविनाशी ईश्वरीय शक्ति है वह, जो कुछ भी अच्छा कहलाने योग्य है उसे, अवश्य हाथ फैलाकर ग्रहण करती है।

जो हमारी सम्ग्र जाति के सृष्टि-कर्ता और रक्षक हैं, जो हमारे पूर्वपुरुषों के ईश्वर हैं--चाहे वे विष्णु, शिव, शक्ति या गणपति

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