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सुमिरन कौ अग ]
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  सन्दर्भ—कबीर का कर्मवाद तथा पुनर्जन्म मे दृढ़ विश्वास है । कर्म का प्रतिफल मानव को उपभोग करना ही पड़ता है। दुष्कर्मो के दुष्प्रभाव का उन्मूलन करने के लिऐ हरि की शरण मे जाना ही अपेक्षित हरि की शरण मे भव की एक भी बाधा नही रह जाती है। प्रस्तुत साखी मे कवि ने इसी भाव को रोचक शैली मे व्यक्त किया है।

भावार्थ— पहले बुरे कर्मो को अर्जित करके विष की पोटली बांधो। हरि की शरण मे आते ही कोटिशः दुष्कर्म पल मे क्षीण हो गाए।

विशेष—(१)कबीर ने प्रस्तुत साखी मे अत्यन्त तर्कपूर्ण ढंग से, अभिनव शैली मे कर्म सिध्दान्त का प्रतिपादन किया है। मानव दुष्कर्मो के प्रभाव से विनाश कि पथ पर अग्रसर होकर माया का चेरा बन जाता है। परन्तु हरि की शरण मे जाने पर दुष्कर्मो के प्रभाव से विलमित्रत हो जाते हैं।(२) कबीर ने कर्म के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करते हुए उसकी औषधि हरिनाम की ओर सकेत किया है। पूर्वज के साथ ही यहाँ कर्म सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है।

शब्दार्थ—कमाइ=कमाकर। करि=कर। वाधो=संग्रह की। पोट=पोटली। करम=कर्म। पेलै=फेके, दूर करे। ओट=शरण।

कोटि कम पेलै पलक मै,जे रचक आवै नाउॉ।
अनेक जुग जे पुत्रि करै,नहीं राम विन ठाउॉ॥२०॥

सन्दर्भ—नाम का माहात्म्य अत्यन्त दिव्य एव प्रभावशाली है। ब्रह्म के नाम का लेश मात्र भी ध्यान करने से समस्त दुष्कर्म विलीन हो जाते हैं। युगो तक कृन पुण्य राम-नाम के बिना निसार है।

भावार्थ—कोटिश; दुष्कर्म क्षणमात्र मे विनष्ट हो जाते है यदि क्षण्मात्र 'राम' नाम का स्मरण होता है। अनेक युगो तक पुण्य करते(मनव) को राम नाम के अभाव मे कही ठौर नही है।

विशेष—(२) प्रस्तुत साखी मे राम-नाम का विस्मरण करने वाले प्रणियो के दुर्भाग्य का मूल्यांकन किया गया है। राम नाम के बिना समस्त नमस्त माघन और जप तप व्यर्थ ही नही निस्मार भी है। अनेक युग तक पुण्य करने से अनुरस मानव की साधना अपूर्ण एव अपरिपक्व है यदि रामनाम की साधना करने नही की है।(२) रामनाम के साधना के बिना संसार मे कही और नही है। कबीर ने नाम का महत्व इस काव्य मे अंकित किया है कि इस विशाल संसार मे राम नाम मे विगृत