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[कबीर की साखी
 

 

सन्दर्भ―भक्त के लिये भगवान को छोडकर अन्य कोई नही होता है।

भावार्थ―कबीदास जी कहते हैं कि जिस प्रकार एक पतिब्रता स्त्री सौभाग्य सूचक सिन्दूर की रेखा ही लगाती है पति को आकर्षित करने के लिए आँखो मे काजल भी लगाती उसी प्रकार मेरे नेत्रो मे तो केवल राम को हि तस्वीर वसी हुई है किसी अन्य को उसमे स्थान नही मिल सकता है।

शब्दर्थ―स्यंदूर=सिंदूर।नैमू-नेत्रो मे।

कबीरा सीप समद की,रटै पियास पियास।
समदहि तिणका बरि गिणै,स्वाँति बूँद की आस॥

सन्दर्भ―जिसका जिसमे प्रेम होता है उसके लिए उससे बढकर और कोई पदार्थ नही होता है।

भावार्थ―कबीरदास जी कहते हैं कि समुद्र मे पड़ी हुई सीपी उसके जल से तृप्त न होकर प्यास रठती रहती है। वह तो स्वाति नक्षत्र के बूँद को आशाएँ विशाल समुद्र को तिनके के समान नगण्य समझती है।

विशेष―अन्योक्ति अलंकार।

शब्दार्थ―समदहिं=समुद्रहि=समुद्र को।

कबीर सुख कौं जाइ था,आगे आया दुख।
जाइ सुख घरि आपणै,हम जाणै अरु दुख॥६॥

सन्दर्भ―साधक परमात्मा की प्राप्ति के लिए सासारिक सुखो को तिलाजलि दे देता है।

भावार्थ―कबीरदास जी कहते है कि इस विषय विकार से भरे हुए संसार के सुखो मे लिप्त होने जा ही रहा था कि अचानक मेरा साक्षात्कार परमात्मा के विरहरुपी दुख से हो गया। तब मैंने सांसारिक दुखों को तिमाजलि देकर ईश्वर की प्राप्ति के लिए विरह(दुख) को ही सहने का लक्ष्य बनाया है।

दो जग तौ हम ॲगिया,यहु डर नाहीं मुझ।
भिस्त न मेरे चाहिए, बांँझ पियारे तुझ॥७॥

संदर्भ―ईश्वर के अभाव मे भक्त स्वगं भी नही चाहता है।

भावार्थ―कबीरदास जी कहते हैं कि यदि मुझे नरक मे भी जाना पढे और वहाँ पर मुझे परमात्मा के दर्शन न होता रहे तो मुझे कोई भय नही है। किन्तु ऐप्रितम! तेरे बिना यदि मुझे स्वर्ग मे भी जाना पडे, तो वह भी मेरे लिए त्याज्य है,व्यर्थ है।