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[कबीर की साखी
 


शब्दार्थ—अऊत = निपूत।

कबीर कुल तौ सो भला, जिहि कुल उपजै दास।
जिहिं कुल दास न ऊपजै, सो कुल आक पलास॥८॥

सन्दर्भ—कुल की शोभा दास से ही होती है।

भावार्थ—कबीर का कथन है कि वह कुल भला है अर्थात् श्रेष्ठ है जिस कुल में हरि का सेवक जन्म ले। और जिस कुल में हरि का सेवक जन्म न ले, वह कुल आक और प्लास (टेसू) के समान निष्प्रयोजन है।

शब्दार्थ—पलाश = टेसू। उपजै = उत्पन्न हो।

सापत बांभण मति मिलै, बैसनौ मिलै चँडाल।
अंक माल दे भेटिये, मांनों मिले गोपाल॥९॥

सन्दर्भ—ब्राह्मण शाक्त से वैष्णव चांडाल श्रेष्ठ है।

भावार्थ—कबीर का कथन है कि शाक्त ब्राह्मणों से मिलने की अपेक्षा चाण्डाल वैष्णव से मिलना ही अच्छा है उस वैष्णव से मिलना इस प्रकार भेंट करनी चाहिए कि मानों ईश्वर से मिल रहे हो।

शब्दार्थ—वेसनौ = वैष्णव। बांमण = ब्राह्मण।

रांम जपत दालिद भला, टूटी घर की छांनि।
ऊँचे मंदिर जालि दे, जहाँ भगति न सारंगपानि॥१०॥

सन्दर्भ—जहाँ राम की भक्ति न हो उन प्रसादों को जला देना चाहिए।

भावार्थ—राम का जप करते हुए दरिद्रता पूर्वक जीवन व्यतीत करना भी अच्छा है, नाहे घर का छप्पर भी टूट गया हो, अर्थात् दरिद्रतर अवस्था भी राम-भक्ति करते हुए अच्छी है जिन ऊँचे-ऊँचे प्रासादों में राम का जप न होता हो उन्हें भस्म कर देना चाहिए।

शब्दार्थ—दालिद = दरिद्र। सारगपानि = विष्णु (अनाम ब्रह्म से तात्पर्य है)।

कबीर भया है केतकी, भवर भये सब दास।
जहाँ जहाँ भगति कबीर की, तहाँ तहाँ राम निवास॥११॥५२५॥

सन्दर्भ—भवन केतकी के सदृश है और उसके दास भ्रमर के समान हैं।

भावार्थ—कबीर दास जी का कथन है कि मैं केतकी के समान हूँ और मेरे दास भ्रमर के समान है। जो नित्य ही मुझे घेरे रहते हैं तथा जहाँ मेरी (कबीर की) भक्ति है वहाँ राम का निवास समझों।


शब्दार्थ—केतकी = पुष्प। भंवर = भ्रमर।