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दोनो का एक ही कथन है कि मानव का भला और बुरा होना उसके कुल या जाति पर निभंर नही है। कुलीनता और अभिजात्य का गर्व झूठा है। जिसके कुल मे गोवध होता था,लोग बाह्मआडम्बरो मे लीन थे,उसी कबीर ने ऐसा आचरण किया कि तीन लोक नौ खंड मे प्रसिद्ध हो गया। इन पंक्तियो से कबीर का बिद्रोहात्मक आचरण प्रकट होता है। पीर शहीद,शेख के गुलाम,ईद बकरीद मे ब्रह्म का रूप देखने वाले परिवार मे उत्पन्न होकर कबीर ने भिन्न आचरण किया। इसके अतिरिक्त पीपा ने अनेक स्थलो पर कबीर की बड़ी प्रशंसा की है। उनकी वाणी का एक पद उध्दुत किया जाता है:-

जो कलिमांझ कबीर न होते ।
तौलै-वेद अरु कलिजुग मिलिकरि भगति रसातलि देते॥
अगम निगम की कहि काहै पाउ फला भामोत लगाया।
राजस तामस स्वावक कथिकथि इनही जगत भुलाया॥
सागुन कथिकथि मिला पनाया काया रोग बढ़ाया।
निरगुन नीक पियौ नहीं गुरुमुप तातै हाटै जीव निराया॥
बहता स्त्रोता दोऊ भूले दुनियां सवै भुलाई।
कलि विर्ध्दकी छाया बैठा क्यू न कलपना जाई॥
श्रंध लुकटिया गहि जु अंध परत कूप थित थोरै।
अचंन बरन दोऊ से व्यंजन आपि सबन की कोरै॥
लसे पतित कहा कहि रहेते थे कौन प्रतित मन घरते।
नांनां वानी देवि सुनि स्त्रवन बहौ मारग श्रणसरते॥
त्रिगुण रहत भगति भगवंत कीतिरि,विरला कोई पात्रै।
दया होइ जोई कृपानिधान की तौ नाम कबीरा गावै॥
हरि हरि भगति भगत कवलीन त्रिविधि रहत थित मोहै
पाखंड रुप भेप सव कंकर ग्यान सुपले सोई॥
भगाति प्रताप राएय बेकारन निज जन-जन श्राप पठाया।
नाम कबीर साम साम पर करिया तहां पीपै कछु पाया॥

भारतवर्ष मे धर्म के नाम पर कौन से अनाचार और दुराचार नहीं हुए। कबीर के समय तक धर्म का स्वच्छ सहज रुप अत्यन्त विकृत और विस्मृत हो गया