पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/३६९

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६५४] [कबीर

                             (२५६)
  अलह ल्यौ लांयॅ काहे न रहिये,
                अह निसि केवल रांम नमं कहिये ॥ टेक॥
  गुरमुखि जलमां ग्यांन मुखि छुरी, हुई हलाल पंचू पुरी ॥
  मन मसीति मै किनहूँ न जांनां, पच पीर मलिम भगवांनां ॥
  कहै कबीर मै हरि गुंन गाऊं, हिंदू तुरक दोऊ समझाऊँ ॥