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ग्रन्थावली
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ह्र्दय मे दया- करुणा का भाव जगा और सामारिक वैभव के प्रति अपनी आसक्ति को कम(तिरोहित) कर दे। अपने स्वरूप को पहिचान कर जब तू अपने स्वामी भगवान के स्वरुप को समझेगा, तब कही जाकर तू स्वर्ग की प्रप्ति का अधिकारी बनेगा। मिट्टी (उपादान कारण मूल प्रकृति) एक ही है और उसी से विभित्र रूपात्मक योनियो रूपी वर्तनो का निर्माण हुआ है। इस प्रकार समस्त दृश्यमान जगत मे ब्रह्मा समाया हुआ। कबीर कहते है कि(इसी विवेक के फलस्वरूप) मैने स्वर्ग के प्रति आसक्ति को त्याग दिया है । और नरक के प्रति मन को आश्वस्त कर लिया है, अर्थात् सबको समान समझने के फल स्वरूप मुझको यदि नरक मै जाना पड़ेगा तो मुझे किसी प्रकार का दुख नही होगा।

अलंकार—(१) छेकानुप्रास- अलह अवलि।

(२) गूढोत्कि-मुरशिद आया।

विशेष -(१) जोर नही फुरमाया- सबके मूल स्थान भगवान से क्या पीर मुरशिद नही आये, जो वे उसी भगवान से आने वाले अन्य प्राणियो पर जोर जबरदस्ती करने का उपदेश देते है?

(२) दो जग ही मन माना- इस प्रक्ति का अर्थ इस प्रकार भी किया जा सकता है-

रे मिया, तुमने जोर जुल्म और व्हामाडमरो मे विश्वास करके वास्तव मे स्वर्ग छोड़कर नरक मे ही अपना मन लगा लिया है, और इस कारण तुमको नरक ही मिलेगा।

वैसे कबीरदास सदा यही कहते आए है कि मै तो नरक मे भी व्र्हम आनन्द रूप का साक्षात्कार कर लूँगा। इस कारण मेरे लिए स्वर्ग-नरक समान है। ज्ञानोदय के फलस्वरूप मेरो भेद-बुद्धि समाप्त हो गई है-

अनजाने को नरक सरग है, जाने को कुछ नाहीं।
जोहि डर को सब लोग डरत है, सो डर हमरे नाही।

(३) मुसलमान धर्म के वाह्मचारो का इतना सबल विरोध कबीर जैसे साहसी साधक ही कर सकते है। अन्यथा हिन्दुओ की तरह मुसलमानो के धार्मिक विश्वासो के विरुद्ध मुँह खोलना आसान नही है।

(४) माटी एक "समाना- एकेश्वरवाद एवं अव्दवैतवाद का सुन्दर समन्वय है।

(५)सतरि कावे इक दिल भीतरि- तुलना करें—

हुमारे तीरथ कौन करे?

मन में गंगा मन में जमुना भटकत कौन फिरे? इत्यादि

तथा -

दिल के आइने मे है तस्वीरेयार।
जब जरा गरदन झुकाई देख ली।