पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/३७९

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गछन ऐसा है कि जो जैना है उस्को वह वैसा ही दिखाई दैता है अर्थात् उसका गवछन अनिवंनीय है|वक्ति अपने चैत्तना विकास के आनुसार उस्की अनुभूति करता है|किसी को कर्त्तापन के भर्म मे नहि पडना चाहिए। समभ्त लैना चाहिए कि गजा गम जमा करते है वैसा ही होता है अर्थात् मनव कुछ नही करता है,सब कुछ भगवान का ही किया हुआ होता है |

  अलकार-(१)विवैगन अनवे-मोरा|
        (२)गूढोक्ति-कहा भुलाना|
        (३)शत्पक-=ब्रह्म अगिन|
    विशेष-(१)जानि पाँ का विरोध है|
         (२)मन कि शुद्धि का प्रतिपादन किय गया है-जब मन कोई|साथ ही ब्रम्हा की आनिवचनीयता का प्रतिपादन किया गया है-'जहा जैसा तहा तैसा|कबीर नै अन्यथ भी कहा है कि-ऐसा नही वैसा वो|मै किन विद्दि कहू कैसा लो|"

(४)उम पद मै प्रघानान ज्ञान और भक्ति का प्रतिपादन है|कतिपम पनियो मै नागारिक नैरात्म्यवाद की ओर भी संकेत किया गया है|

                 (२३४)
     मन रे सरची न एकी काजा,
        तायै भज्यी न जगपति राजा||टैक||
    वेद पुरान सुमूत गुन पढि,पढि पढि गुनि मरम न पावा |
    संध्या गाइत्री आरु पट करमं, तिन थै दूरी वतावा |
   वङवधि जाई बहुत तप कीन्हां, कन्द धूल खनि खावा |
   विरह्म गियानि आधिक घियानी , जम कै पट लिखावा ||
  रोजा किया निमाज गुजरी वग दे लोग सुनावा|
  हिग्दं कपत मिलै क्यू साई क्या हज कावै जावा ||
  पहन्छो फाल मकल जग ऊपरि ,माहि लिऐ सव ग्यानी|

कहे कबीर ते भये पलचस,राम भगति जिनि जानी|