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[ कबीर
 

(vi)दर कौड़ी डहकाया-समभाव देखें-

रात गँवाई सोय कर, दिवस गँवायो खाय।
हीरा जनम अमोल था,कौड़ी बदले जाय।

(vii)वलि-यह एक पौराणिक पात्र है। यह एक प्रसिद्ध तापी दानी राजा थे। विष्णु ने वामन अवतार धारण करके इनसे तीन पग पृथ्वी दान मांगी थी। दो पगो मे विष्णु ने समस्त पृथ्वी नाप ली थी ओर तीसरा पग इनके सिर पर रखा और बलि को पाताल भेज दिया। इस प्रकार इनकी दानशीलता की ओट मे विष्णु ने बलि को छ्ला था। बलि विरोचन के पुत्र और प्रहलाद के पौत्र कहे जाते है।

(viii)राजा विक्रमादित्य,राजा भोज तथा राजा धीसलदेव ऐतिहासिक पात्र है।


विक्रम-यह एक बड़े प्रतापी और प्रसिद्ध राजा हुए हैं। महाकवि कालिदास इन्ही के दरबार के नवरत्नों मे एक थे-ऐसा कहा जाता है। विक्रम संवत् के प्रस्थापक आप ही थे। आपके विषय में 'सिंहासन बत्तीसी'और अनेक दन्तकथायें प्रचलित है।

भोज-यह उज्जैन के राजा थे जिन्होने अपनी राज्धानी धारा बनाई थी। इनका पालन-पोषण इन्के चाचा राजा मुज द्वारा हुआ था। राजा भोज एक सुयोग्य शासक थे। वह स्वयं बहुत बड़े विद्वान थे और विद्वानो का आदर करते थे। उनकी राजसभा के पण्डितो की भी बहुत सी कथाएं प्रचलित है।

बीसलदेव-बीसलदेव अजमेर के चौहान राजा थे। इनका नाम विग्रहराज चतुर्थ भी है। इन्का समय सवत्त १२२० के आसपास है।

यह बडे़ ही प्रतापि और वीर राजा थे। इन्होने मुसलमानो के विरुध कई चढ़ाइयाँ की थी और कई प्रदेशो को खाली कराया था। इनके वीरचरित्र का बहुत कुछ वर्णन इनके राजकवि सोमदेव-रचित 'ललित विग्रहराज' नाट्क मे है। जिसका कुछ अन्श बड़ी-बड़ी शिलाओ पर खुदा मिलता है। नरपति नाल्ह ने इन्ही के चरित्र को लक्श्य करके 'बीसलदास रासो' की रचना की थी।

(२६७)

रे चित चेति च्यान्ति लै ताही,

जा च्यतत आपा पर नाहीं॥टेक॥

हरि हिरदै एक ग्यांन उपाया, ताथै छूटि गई सब माया। ॥

नाद न व्यन्द दिवस नाहि राती, नही नरनारि नही कुल जाती ।

कहै कबीर सरब सुख दाता,अविगत अलख अभद विधाता ॥

शब्दार्थ-च्यति=ध्यान कर, चिन्तन कर। ताही=उसी का। आपा पर=अपना-पराया।

सन्दर्भ-कबीरदास परम तत्व के साक्शात्कार का वर्णन करते है।