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ग्रंथावली]
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योनियों मे घूमाते है। यह लीला माया के गहरे पदें मे छिपी हुई है, अत इसके विषय मे कुछ भी नही कहा जा सकता है। विन्दु तत्व उतयन्त गहन है। वह तनिक भी नही दीखाई देता है। यह जीव तत्व स्वय ही अपने अज्ञान के कारण आवृत्त रहता है और शास्त्रो के द्वारा(वीधाध्ययन के द्वारा) उसको जाना नही जा सकता है। अज्ञान मे भुला हुआ जीव दुत भावना के कारण अत्यधिक भयभीत है। अज्ञान की रात अध कुए के रूप मे गहन से गहनतर होती जा रही है। माया-मोह की घटायें उमर आई है। सशयो के मेढ्को की टर टर,विपयाशक्ति की चपलता की चमक एव वासना के अधड की आवाज से जीवन का सम्पुण वातावरण भरा हुआ है। इसमे भय की गजना एव विपत्तियों की अखण्ड वर्षा हो रही है। मोह रुपी रात्रि अत्यन्त भयानक हो गई है और चारो ओर अज्ञान का गहरा अधकार छाया हुआ है। भगवान से वियुक्त होकर जीव अनाथ हो गया है। वह इस ससार रुपी जगल मे भट्क गया है अौर उसको इसके पार जाने का मार्ग नही मिल रहा है। जीव को स्वय तो ज्ञान नही है ओर वह किसी की कहना भी नही मानता है। इस प्रकार वह जान-बूझ कर अज्ञानी बन कर दुख उठा रहा है। नट अनेक प्रकार के खेल करता है अौर उनके विषय मे सब कुछ जानता है। कलाकार के गुन्नो का उसका सहदय स्वमी ही उसका सम्मान कर पाता है। नट की तरहा भगवान भी सबके शरीर के भीतर ऋडा कर रहे है, परन्तु दूसरे उसको कुछ नही समझते है। गुण की पहिचान गुणी ही कर सकता है- जिसकी बात होती है, वही उसको समझ पाता है, अन्य अज्ञानी उसको नही समभ पाता है। दान-पुण्य भी हमारी निराशा के हेतु बनते है (क्योकि इनके कारण हमे फल भोगने के लिए जन्म लेना पडता है) पता नही, कब तक जीवन की इस नट-विधा का खेल-खेलना पडेगा। जीवन के जगल मे मारे-मारे फिरते हुए हमारे पेर टूट गये है। भगवान का चरित्र अग्मय है,उसका वर्णन कौन कर सकता है? देवता, गन्धर्व, मुनि आदि भी भगवान की माया का पार नही पा सके है। भगवान की लीला मे तो शिव ओर व्रह्मा भी सुते हुए है और कोइ वेचारा अन्य जीव तो उन्हे किचीत मात्र भी नही जान सकता है। सब जीव देन्य भाव से पुकार करते है कि , हे स्वमी रक्षा करो , रक्षा करो। अपने मुझको करोडो यह्माण्डो मे घुमा दिया है। अनेक जन्मो तक आपने मुझे गुलर के किडे की मोति माया मे बन्धे रखा है। अब मैने इश्वर की उपासना का योग धारण कर लिया है। इसमे न मेरा ध्यान टूटा है ओर न तप खण्डित हुआ है। सिद साधको ने जो कुछ बताया है, उससे मन और चित स्थिर नही हो पाता है। आपकी लीला तो अगम्य है। उसका वर्णन करके कौन पार पा सकता है --अर्थात उसका वुणेतया वर्णन कोइ नही कर सकता है। कबीर कहते है की हे जीव रुपी पक्षी गगवान की खोज मे पिछे मत रहे। भगवन तुम अपार हो। जब तक उसका साक्षात्कार नही हो जाता है , तब तक