पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/६०४

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कुसबद कौ त्र्प्र्ग्ड

   श्र्पणी सुहेली सेल की, पड्तो लेइ उसास।
   चोट साहरै, सबद की , तास गुरू मै दास॥१॥ 

सन्दर्भ-- कुशब्द क प्रभाव बदा व्यापक और गम्भीर होता है। भावार्थ-- भाले की नोक की चोट खाकर सांस तो लेता है परन्तु कुशब्द की चोट बदी घातक होती है,जो कुशब्द को सहन कर जए उसका मै सेवक हूँ।

     शब्दर्थ--अणी=नोक। सुहेली=सहने योग्य। सेल= भाला।
    
 

===== खूंदन तौ धरती सहै,बाढ सहै बनराई।

     कुसबद तौ हरिजन सहै, दूजै सह्या न जाइ॥२॥ =====

सन्दर्भ-- हरिजन ही कुशब्द सहन करते है दूसरा नही।

भावार्थ -- खोदना -खोदना प्रथ्वी सहन करती है व्रुक्ष बाढ सहन करते है,हरिजन कुशब्द सहन करते है, दूसरा अन्य नही सहन कर सकता है।

शब्दर्थ --खू दना पैरो को रगडना।


             सीतलता तब जाणियें, समिता रहै समाइ।
             पष छाडै निरपष रहै, सबद न दूप्या जाइ॥३॥

सन्दर्भ--समह्ष्टि तब अनुभव होती है , जब शीतलता क भाव ह्रदय मे जाग्रत होता है। भावार्थ -- पक्षपात कि भावना को छोडकर , निष्पक्ष होकर विचारण करे,तभी उसके शब्द दोशपुर्ण नही होगे। शब्दर्थ् --' पष=पक्ष। दुष्या जाई=दूषित लगे।


        कबीर सीतलता भई, पाया ब्रह्म गियान।
        जिहि बैसंदर जग जल्या,सो मेरे उदिक समान॥४॥६१०॥
सन्दर्भ-- इश्वर की कृपा से ब्रह्म ज्ञान प्रप्त हो गया और माया की अग्नि शान्ति हो गई।