पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/६११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०७]
[कबीर की सखी
 

भावार्थ -यदि मरने का वास्तविक ज्ञात हो जाय तो जीवित रहने से मर जाना ही अचछा है| मरने का वास्तविक तरीका तो यह है कि वास्तविक मृत्यु के पेहले ही व्यक्ति सन्सार प्रलोभनो और आकषणो से विरक्त हो जाय तो इस कलिफाल मे भी यह अमर हो सकता है।

शब्दार्थ- अजरायर = अमर के समान ।

खऱी कसौटी राम की, खोटा टिके न कोइ ।

राम कसौटी सो टिके, जौ जीवत मृतक होइ ।। ९ ।।

सन्दर्भ्---ईश्वर भक्ति की कसौटी पर सभी व्यक्ति खरे नहीं उतरते है उस पर जीवन्मुक्त प्राणी ही खरा उतरता है।


भावार्थ-ईश्वर की कसौटी विल्कुल खरी है उस कसौटी पर खोटा व्यक्ति नहीं उतर सकता है । उसपर तो वहीं व्यक्ति खरा उतर सकता है जो जीवन धारण किये हुए भी सांसारिक माया जाल से निलिप्त रहते हैं उसके आकर्षणों से दूर रहते है ।

शब्दार्थ-मृतक = मरा हुआ ।

आपा मेट्या हरि मिले, हरि मेटूयाँ सब जाइ ।

अकथ कहाणी प्रेम की, कहयां न को पत्याइ ।। १० ।।

संदर्भ-अहन्कार को नष्ट करने पर ही ईश्वर की प्राप्ति होती है |

भावार्थ-व्यक्ति के अन्दर यदि अहंकार की भावना नष्ट हो जाती है तो ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है किन्तु वह व्यक्ति जो ईश्वर को विस्मृत कर देता है उसका सव कुछ नष्ट हो जाता है । प्रेम (ईश्वर-प्रेम) को कहानी अकयनीय् है उसको कहने पर सभी विश्वास न्हीं करते हैं ।

शब्दार्थ- आपा मेट्या = अह को नष्ट करने पर । पत्त्तायी=विश्वास् करता है |

निगुसावा बहि जाइगा, जाके घाघी नहीं होइ ।

दीन गरीबी बन्दिगी, करता होइ सु होइ ।।

सन्दर्भ्- इस संसार मे जिसे ईश्वर पर विश्वास नहीं हैं वह संसार सागर मे बहता रहता है ।

भावार्थ-इस संसार मे जो व्यक्ति बिना ईश्वर के अवलन्ब के रहना चाहेगा वह संसार में नष्ट हो जायेगा और बिना गुरु के आश्रय के भी व्यक्ति नष्ट हो जायगा । इस लिए इस संसार का जो भी संचालन करने वाला हो उसकी वन्दना विनम्रता और दीनता पूर्वक करनी चाहिए ।