पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/६७४

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सन्दर्भ -- कवीरदास मानव को चेतावनी देते हुए कहते है कि उसे रामनाम

का स्मरण करना चाहिए ।
भावतर्थ -- री पागल जीवात्मा। दिन प्रतिदिन यह शरीर क्षीण हो रहा है।
हे पगली। भगवान राम के प्रति मन को अनुरक्त कर ले। तुमहारा बचपन तो नष्ट 
हो ही गया है, जीवन भी चली जाएगी अौर बुढ़ापा तथा मृत्यु का भय उपस्थित
होगे । तुमहारे बाल सफेद हो गए है, नेत्रो मे कमजोरी के कारण सदैव पानी डब-

डबाता रहता हे। हे मूर्ख ! अब भी हिश मे अाजा। देख, बुढापा तो अा ही

धमका है। राम-नाम का उच्चारण करते हुए तु्झ को शर्म क्यो लगती है। प्रत्येक 
क्षण तेरी अायु कम हो रही है अौर तेरा शरीर दुर्बल होता चला जा रहा है। लज्जा 
 कहती है कि मे यमराज की दासी हुँ। इसि कारण इसको राम-नाम कहने से
  पराड्मुख करती रहती हूँ। मेरे एक हाथ मे मुगदर है अौर दूसरे हाथ मे फदा है।
 जिससे यमराज को इसे मारकर वाँघकर ले जाने मे विलम्व न लगे)। कबीरदास
 कहते है कि जिन्होने मन से भी राम-नाम को भुला दिया है, उनका जीवन सवंथा
निरथंक हि गया है।
               अलंकार- (१) मानवीकरण-लज्जा कह्यौ ।
                      (२) पुनरुक्ति प्रकाश-पल-पल ।
               विशेष -(१) व्यजना यह है कि राम-नाम के स्मरण से मृत्यु पर विजय
          हो जाती है।
              (२) निवैद सचारी भाव की व्यजना है।
                                    (२४३)
           मेरी मेरी करतां जनम गयौ,
                      जनम गयौ परि हरि न कह्यौ ।। टेक ।।
          वारह वरस वालपन खोयौ, वोस वरस कछू तप न कीयौ ।
          तीस वरस फै राम न सुमिर्यौ फिरि पछितानाँ विरघ भयौ ।।
         सूफं सरवर पाली वंघावै, लुलै खेत हठि बाड़ि करै ।
        अायो चोर तुरंग मुनि ले गयौ मोरी राखत मुगध फिरै।।
        मोस घरन कर कंपन लोग, नैन नीर उस राल वहै ।
         जिन्दा वचन सूघ नही निफसै, तब सुकरित की बात कहै।।
         कहे कबीर गुनदरे संतो, घन संच्चो कछु संगि न नयौ ।
         अाई तलब गोपाल राई की मड़ी मंदीर छाड़ि चल्यौ ।।