पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/६९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[६८९ ग्रन्थावली] परका जाए अथवा उसको पानी में डुबा दिया जाए? इस पंक्ति का अर्थ इस प्रकार भी किया जा सकता है कि उस व्यक्ति के शरीर पर किसी तीर्थ-स्थान की मिट्टी मलने से अथवा उसको तीर्थ-जल से स्नान कराने से क्या लाभ है? ऐसे पाखण्डी एवं अत्याचारी व्यक्ति को सम्बोधित करते हुए कबीर कहते हैं कि तुम्हारे वजू (जू-नमाज से पहले यथाविधि हाथ-पाँव और मुँह धोना)। जप मार्जन (जल छिड़क़ कर पवित्र होना), से क्या लाभ है? तुम मसजिद से जाकर सिर झुकाते हो, इससे क्या लाभ है? रोजा रखने, नमाज पढ़ने, तथा हज एवं काबे जाने (तीर्थाटन) से क्या लाभ है? ब्राह्मण वर्ष की चौबीसो एकादशियों को उपवास रखता है और काजी मोहर्रम के पूरे महीने भर इमामहुसैन की शहादत के लिए शोक मनाता है। पर इनका क्या उपयोग है? रमजान के महीने को छोड़कर शेष ग्यारह महीनों को अलग क्यों कर दिया? सभी महीने समान है-(सभी में धार्मिक कृत्य करने चाहिए।) अगर खुदा केवल मस्जिद में ही रहता है, तो शेष समस्त संसार किसका है? हिन्दुओं के अनुसार तीर्थों में और मूर्तियों में भगवान (राम) का निवास है। परन्तु उसके दर्शन तो दो में से किसी में भी किसी ने नहीं किए हैं। हिन्दुओं के मतानुसार पूर्व दिशा में भगवान का निवास है। मुसलमानों की राय में पश्चिम में अल्लाह का निवास-स्थान है। (इस प्रकार हिन्दू और मुसलमान दोनों ही भगवान को मानो सर्वव्यापी नहीं मानते हैं) हे मानव, तुम अपने हृदय को ही ढूँढो वही तुमको राम और रहीम (ईश्वर और खुदा) दोनों के दर्शन हो जाएंगे। कबीर कहते हैं कि हे प्रभु। संसार के जितने भी नारी-पुरुष (नर-मादा) हैं, उन सबके भीतर तुम्हारा स्वरूप विद्यमान है अथवा वे सब तुम्हारे ही अव्यक्त रूप के व्यक्त रूप हैं। (मैं तो राम ईश्वर और अल्लाह दोनों का ही दास हूँ। भगवान मेरे गुरु और पीर दोनों ही हैं।

अलंकार – (1) गूढोक्ति क्या ले सम्पूर्ण पद।

विशेष – (1) बाह्याचार की निरर्थकता एवं राम रहीम का प्रभेद बताकर कबीर ने हिन्दू और मुसलमानों की एकता का प्रतिपादन किया है। (11) कबीर भगवान को सर्वव्यापी बताते हैं और इसी आधार पर प्रभु-भक्ति का निर्वाह करना चाहते हैं- सो अनन्य गति जाकें मति न टरै हनुमंत। मैं सेवक सचराचर रूप-स्वामि भगवंत। (गोस्वामी तुलसादास) (111) क्या ले माटी मुँह सूँ मारै-भक्त जन तीर्थ की परिक्रमा 'लेट-लेट' कर भी लगाते हैं-इसको दड़ौती परिक्रमा कहते हैं। ऐसा करते हुए उनके शरीर में जमीन की मिट्टी चिपक जाना स्वाभाविक है। सम्भवतः कबीर का संकेत इस ओर भी हो सकता है।