पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/७९२

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[कबीर

              (३) मै बौरी राम भरतार। हसमे सूफियो की पद्धति पर दाम्पत्य प्रेम की व्यजना है। समभाव देखे--
       मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।
       जाके सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई।
       छान्डि दई कुल की कानि, कहा करि है कोई।
 तथा-  मै हरि बिन क्यो जिऊरी माइ।
       पिब कारन बौरी भई, ज्यो घुन काठहि खाइ।      (मीराबाई)
                      (३४३)
        जौ मै बौरा तौ राम तोरा,
             लोग मरम का जानै मोरा॥टेक॥
        माला तिलक पहरि मनमाना,लोगनि राम खिलौना जाना॥
        थोरी भगति बहुत अहकारा, ऐसे भगता मिलै अपारा॥
        लोग कहै कबीर बौराना, कबीरा कौ मरम राम भल जाना॥
       शब्दार्थ--का=क्या।
       सन्दर्भ--कबीर का कहना है कि बाह्यडम्बर वाले उपासक की अपेक्षा सच्चे भक्त राम के अधिक निकट रहते है।

भावार्थ -- हे राम मै जो पागल हो रहा हूँ ,वह तो तुम्हारे ही प्रेम मे पागल हू। सन्सार के लोग मेरे इस पागलपन का रहस्य क्या समझे? (वे मुझ को सामान्य पागल समझते है और मेरे ज्ञान-भक्ति की बात नही जान्ते है।) मनमाने ढग से माला-तिलक धारण करने वाले लोग राम को खिलौना समझ कर तरह-तरह से सजाते है, अर्थात यह काहिए कि औपचारिक पूजा के नाम पर लोग राम की प्रतिभा को खिलौन समझ कर माला तिलक से सजाते है। ऐसे दिखावटी लोगो मे सच्चि भक्ति तो बहुत कम होती है और इनमे अहन्कार की माया बहुत होती है। ऐसे अहन्कारी भक्त बहुत मिलते है। लोग कहते है कि कबीर पागल हो गया है,परन्तु कबीर के इस पागलपन के रहस्य को (वास्तविक कारण को) भगवान राम अच्छी तरह जानते है।

         अलकार--(१) गूढॊक्ति-- का जानै।
          (२)रूपक की व्याजना -- राम खिलौना जाना।
         विशेष--(१) बाह्याचार का विरोध है।
          (२) भगवान का भक्त सान्सारिक व्यवहार मे चतुर नही रह जाता है, वह पागल सा दिखाई देता है।
          (३) माला॰॰॰॰॰खिलौना---- खिलौना जैसे व्यकति कि विभिन्न वसनाओ की तृप्ति का साधन होता है, उसी प्रकार बाह्य पूजा करने वाला भक्त भगवान की मूर्ति को अपनी कतिपय वासनाओ की तृप्ति का साधन मान बैठता है।