पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/८४८

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है, वह सर्वथा शुद्धात्मा बन जाता है । इडा, पिंगल? और सुपुम्बा, जिन्हें गंगा, वंक्याल एव अवघूती भी कहते हैं-के सगम में अपने-अपने अगो को धोली । इसमें तेरे समस्त पाप धुल जाएँगे ।

अलंकार-रूपक- ग्यान दृष्टि, निहकर्म जल,

विशेष- बाह्य कर्म-काण्ड को व्यर्थ बताकर योग-साधन की महत्ता का प्रतिपादन किया गया है । कबीरदास के ऊपर नाथ-सम्प्रदाय की साधना का स्पष्टता. गहरा प्रभाव दिखाई देता है ।

(२) इडा को गया कहा है । सुषुम्ना को बकनाल या पश्चिम दिशा भी कहते हैं । सुषुम्ना को अवधूती या बालरडा तपसिवनी भी कहा गया है ।-६ वी पक्ति कबीरदास का अभिप्राय इडा पिंगला और सुषुम्ना के सगम से है । कथन से कुछ दुष्कमत्व दोष आगया है ।

( ३१२ ) भजि नारदादि सुकादि बंदित, चरन पंकज भांमिनी । भजि भजिसिं भूषन पिया मनोहर, देव देव सिंरोबनी ।।टेका। बुधि नाभि चदन चरचिता, तन रिदा मदिर भीतरा । रांम राजसि नन बानी, सुजान सुदर सुंदरा १। बहु पाप परबत छेदनां. भी ताप दुरिति निवारणां, । कहै कबीर गोव्यद भजि, परमांनंद बंदित कारणां ।।' शब्दादॅ-भामिनी-, सुन्दर रुत्री (जीवात्मा); छेदापां=नष्ट करने वाले । दुरित = सकट । नियारणा-दूर करने वाले । कारणा=कारणभूत, उत्पत्ति के कारण । भूषन पिया=लक्ष्मी । सन्दर्भ- कबीर भगवद भजन का उपदेश देते हैं । भावार्थ-री आत्मा सुन्दरी, नारद इत्यादि मुनि तया शुकदेव इत्यादि ऋषियों के द्वारा बनिदत भगवान के चरण-कमलो का भजन कर । लक्ष्मी के हृदय के आभूषण एव अत्यन्त मनोहर तथा सम्पूर्ण देवताओं के सिर पर मणि के समान शोभा देने वाले इन चरणों का भजन कर । चन्दन से चचित बुद्धि-रूपी नाभि तथा शरीर एव हृदय-रूपी मन्दिर में विराजमान आत्मारूपी राम सुशोभित हो रहे हैं । राम अत्यंत ज्ञानी हैं । यह अपने सुन्दर नेत्रों एव वाणी से सुशोभित है तथा सुन्दरी मे भी सुन्दर है अथवा सुन्दरो की सुन्दरता हैं । वह सम्पूणॅ पापो के पहाडो कौ नष्ट करने वाले हैं तथा ससार के कषटो एव संकटों को दूर करने वाले हैं । कबीर कहते हैं, तू उन गोर्थिद का भजन कर जो परमानंद स्वरूप हैं तथा सुषिट् के उत्पत्ति कारणों ( मुषिट् के उत्पादक तत्वों) द्वारा वन्दित हैं ।

(१)रूप चरन पकज, बुधि-नाभि तन रिदा मनिदर ।

(२) गभग पद यमक-भजि भजिति । (३) यमक…देव देव ।