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दोनों सिद्धान्तों में से किसी एक का चयन करने में माइकलसन (Michelson) द्वारा किये गए व्यतिकरणमापी प्रयोग द्वारा एक बड़ी कठिनाई उत्पन्न हुई थी।[१]
मैक्सवेल (Maxwell) ने यह निर्धारित किया था कि ईथर विरामावस्था में रहता है तब पृथ्वी पर स्थिति किसी निश्चित बिन्दू के सापेक्ष किन्हीं दो बिन्दुओं के मध्य प्रकाश के एक तरफ और विपरीत दिशा में गति में लगने वाले समय पर प्रभाव होना चाहिए। यदि दोनों बिन्दुओं के मध्य की दूरी है, प्रकाश का वेग है और पृथ्वी का वेग है, तब सम्बंधित समय निम्नलिखीत होगा (यदि बिन्दुओं को मिलाने वाली रेखा गति के समान्तर है):
(1) |
और यदि यह लम्बवत है तो समय
(2) |
होगा और दोनों में अन्तर निम्नलिखित होगा
(3) |
माइकलसन ने ऐसे उपकरण को काम में लिया जिसके एक दूसरे के लम्बवत दो क्षैतिज भुजायें थी और उनके शीर्ष पर लम्बवत दिशा में दर्पण लगे हुये थे। जब दोनों भुजायें के प्रतिच्छेदन बिन्दु के मध्य से एक कीरण एक भुजा की तरफ जाती है और दर्पण से परावर्तित होकर वापस आती है तथा दूसरी भुजा की ओर उसी समय दूसरी कीरण जाती है और दूसरे दर्पण से परावर्तित होकर वापस आती है तो हमें व्यतिकरण की घटना देखने को मिलती है। प्रकाश स्रोत और प्रेक्षण दूरदर्शी सहित पूरा उपकरण उर्ध्वाधर अक्ष के सापेक्ष घुमाया जा सकता है एवं प्रेक्षण सम का चयन किया जा सकता है जिससे इसपर प्रयोग करते समय आवश्यकता के अनुसार पहली अथवा दूसरी भुजा को आवश्यकतानुसार पृथ्वी की गति की दिशा में संरेखित किया जा सकता है। सुगतमता के लिए मान लेते हैं कि इस स्थिति में - यदि फ्रेनल का सिद्धान्त यदि सत्य - तो पृथ्वी की गति के अनुसार आगे और पिछे की दिशा में किरण की गति में एक निश्चित विलम्ब देखने को मिलेगा जिसे (3) द्वारा ज्ञाता किया जा सकता है। जब इसे 90° घुमाया जाता है तो सभी कला विस्थापनों के मान एक दूसरे से बदल जाने चाहिए और उन्हें समय की ईकाई में उल्लिखीत किया जा सकता है और (3) के परिमाण को दो गुणा हो सकते हैं। लेकिन इससे व्यतीकरण फ्रिंज में विस्थापन प्रेक्षित नहीं हो सकता।
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