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अप्राकृतिक नहीं है लेकिन इससे दो कणों को जोड़ने वाली रेखा ईथर माध्यम से गुजरते हुये गति की दिशा के समान्तर और लम्बवत दिशा में अलग-अलग हो सकती है। इसे आसानी से देखा जा सकता है कि की कोटि का प्रभाव अपेक्षित नहीं है लेकिन कोटि के प्रभाव अपवर्जित नहीं हैं और हमें ठीक इसी की आवश्यकता है।
चूँकि हम आण्विक बलों की प्रकृति के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं अतः इस परिकल्पना को सत्यापित करना असम्भव है। हम वास्तव में कुछ अभिधारणाओं के साथ विद्युत् और चुम्बकीय बलों पर विचारणीय पदार्थ की गति के प्रभाव की गणना कर सकते हैं। प्रायः यह उल्लेख करना उचित रहेगा कि जब विद्युत् बलों से प्राप्त परिणाम आण्विक बलों पर स्थानान्तरित किये जाते हैं तो यह का उपर वर्णित मान देता है।
माना पदार्थ बिन्दुओं का निकाय है जिसमें प्रत्येक बिन्दू का निश्चित मात्रा में विद्युत आवेश है और वो ईथर के सापेक्ष नियत है तथा इन्हीं बिन्दुओं का निकाय है, जब वो -अक्ष की दिशा में ईथर माध्यम में सामूहिक वेग से गति करते हैं। मेरे द्वारा व्युत्पन्न समीकरणों[१] से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि निकाय में कण एक दूसरे पर कौनसे बल लगाते हैं। परिणाम को बहुत सरल तरीके से व्यक्त किया जा सकता है, यदि एक तीसरा निकाय माना जाता है जो निकाय की तरह विराम अवस्था में है लेकिन बिन्दुओं की पारस्परित स्थिति वाले बाद वाले निकाय से भिन्न है। निकाय को निकाय में पारस्परिक विस्तार से प्राप्त किया जा सकता है जिसमें -अक्ष की दिशा में गतिशील सभी विमाओं को गुणा बढ़ा दिया जाता है जबकि लम्बवत दिशायें अपरिवर्तित रहती हैं।
निकाय और में बलों के मध्य सम्बंध ज्ञात करने के लिए -अक्ष की दिशा के घटक में समान रहते हैं हैं जबकि -अक्ष के लम्बवत घटक निकाय के मान के गुणा हो जाते हैं।
हम इसे आण्विक बलों पर स्थानान्तरित करना चाहते हैं और पारस्परिक आकर्षण और प्रतिकर्षण बलों के प्रभाव में पदार्थ के बिन्दुओं के निकाय के एक पिंड की कल्पना करते हैं। निकाय ईथर माध्यम में गतिशील पिंड होगा।
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- ↑ Archive néerlandaises, T. XXV. पृ॰ 498.