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पृष्ठ:LorentzRelatieveBeweging.djvu/५

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पदार्थ के बिन्दुओं पर लगने वाले बदल एक दूसरे को विलोपित करते हैं। इसके अनुसार यह स्थिति निकाय में नहीं होगी, हालांकि निकाय से में जाने पर निकाय C में -अक्ष के लम्बवत बल-घटक परिवर्तित हो जाते हैं लेकिन इससे साम्य नहीं प्राप्त होगा कजैसे वो समान अनुपात में परिवर्तित नहीं हुये। इस स्थिति में यह देखा जा सकता है कि जब ईथर माध्यम में पिंड के विस्थापन के साथ की अवस्था साम्य में रहती है, उस अवस्था में साम्य में रहता है जाब विस्तापन नहीं होता है। अतः विमाओं पर गति का प्रभाव ठीक उसी मात्रा में होगा जो इससे पहले माइकलसन के प्रयोग को समझाने के लिए आवश्यक द्खाय गया।

वास्तव में हम इस परिणाम को बहुत महत्त्व का प्रदर्शित नहीं कर सकते; आण्विक बलों का स्थानान्तरण हमें विद्युत् बलों के रूप में प्राप्त होता है, जो किसी के लिए बहुत प्रभावी हो सकता है। इसके अतिरिक्त यदि हम ऐसा मान लेते हैं जिसके अनुसार पृथ्वी की गति की दिशा में लम्बाई में कोई परिवर्तन नहीं होता - जैसा हमने उपर माना है - अथवा लम्बवत दिशा में लम्बाई को दीर्घ कर देता है, तब इस अभिधारणा के साथ हम समान परिणाम प्राप्त करते हैं।

फिर भी इससे नहीं नकारा जा सकता कि आण्विक बलों में परिवर्तन होता है और इसके परिणामस्वरूप पिंड आकार में कोटि का परिवर्तन सम्भव है। माइकलसन के प्रयोग इस स्थिति में अपनी उस सत्यापन क्षमता को खो देता है जो इसका उद्देश्य था। यदि कोई फ्रेनल के सिद्धान्त को मानता है तब इसका अर्थ यह हुआ कि हम यह भी सीख सकते हैं कि इससे विमाओं में परिवर्तन होता है।

यदि होगा तब बीस करोड़वाँ होगा। पृथ्वी के व्यास में इसी अनुपात का संकुचन 6 सेमी होगा। हम मीटर पैमाने से तुलना करते हुये लम्बाई में 20 करोड़वें हिस्से के परिवर्तन को प्रेक्षित नहीं कर सकते और यदि हमारी प्रेक्षण विधि इसकी अनुमति देती है तो विधि में प्रयुक्त स्कैल भी उसी अनुपात में संकुचित होगी और हम इस परिवर्तन को कभी संसुचित नहीं कर सकते, जब दोनों समान रूप से परिवर्तन को प्राप्त करते हैं। इसका एकमात्र उपाय यह हो सकता है कि हम लम्बाइयों की तुलना दो लम्बवत पैमानों से करें,
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