पृष्ठ:QP-CSM22 HINDI-Compulsory.pdf/२

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निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर लगभग 6०० शब्दों में निबंध लिखिए : 1०० ० नवीकरणीय ऊर्जा : संभावनाएँ और चुनौतियाँ ८ संचार क्रान्ति का महत्त्व ० खेलों का बढ़ता व्यवसायीकरण ०५ खान-पान का स्वास्थ्य पर प्रभाव

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उसके आधार पर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर स्पष्ट, सही और संक्षिप्त भाषा में दीजिए : 12 द्र ५-- 6० औपनिवेशिक शासन बेहिसाब कड़ी और जानकारियों के संग्रह पर आधारित था । अंग्रेजों ने अपने व्यावसायिक मामलों को चलाने के लिए व्यापारिक गतिविधियों का विस्तृत ब्यौरा रखा था । बढ़ते शहरों में जीवन की गति और दिशा पर नजर रखने के लिए वे नियमित रूप से सर्वेक्षण करते थे सांख्यिकीय आँकडुए इकट्ठा करते थे और विभिन्न प्रकार की सरकारी रिपोर्टे प्रकाशित करते थे । प्रारम्भिक वर्षो से ही औपनिवेशिक सरकार ने मानचित्र तैयार करने पर खास ध्यान दिया । सरकार का मानना था कि किसी जगह की बनावट और रब को समझने के लिए नक्शे जरूरी होते हैं । इस जानकारी के सहारे वे इलाके पर ज्यादा बेहतर नियंत्रण कायम कर सकते थे । जब शहर बढ़ने लगे तो न केवल उनके विकास की योजना तैयार करने के लिए बल्कि व्यवसाय को विकसित करने और अपनी सत्ता मजबूत करने के लिए भी नक्शे बनाये जाने लगे । शहरों के नर्कों से हमें उस स्थान पर पहाड़ियों नदियों व हरियाली का पता चलता है । ये सारी चीजें रक्षा संबंधी उद्देश्यों के लिए योजना तैयार करने में बहुत काम आती हैं । इसके अलावा घाटों की जगह मकानों की सघनता और गुणवत्ता तथा सड़कों की स्थिति आदि से इलाके की व्यावसायिक संभावनाओं का पता लगाने और कराधान (टैक्स व्यवस्था) की रणनीति बनाने में मदद मिलती है । उन्नीसवीं सदी के आखिर से अंग्रेजों ने वार्षिक नगरपालिका कर वसूली के जरिए शहरों के रखरखाव के वास्ते पैसा इकट्ठा करने की कोशिशें शुरू कर दी थीं । टकरावों से बचने के लिए उन्होंने कुछ जिम्मेदारियाँ निर्वाचित भारतीय प्रतिनिधियों को भी सौंपी हुई थीं । आशिक लोक-प्रतिनिधित्व से लैस नगरनिगम जैसे संस्थानों का उद्देश्य शहरों में जलापूर्ति, निकासी, सड़क निर्माण और स्वास्थ्य व्यवस्था जैसी अत्यावश्यक सेवाएं उपलब्ध कराना था । दूसरी तरफ नगरनिगमों की गतिविधियों से नए तरह के रिकॉर्ड्स पैदा हुए जिन्हें नगरपालिका रिकॉर्ड रूम में सँभालकर रखा जाने लगा । शहरों के फैलाव पर नजर रखने के लिए नियमित रूप से लोगों की गिनती की जाती थी । उन्नीसवीं सदी के मध्य तक विभिन्न क्षेत्रों में कई जगह स्थानीय स्तर पर जनगणना की जा चुकी थी । अखिल भारतीय जनगणना का पहला प्रयास 1872 में किया गया । इसके बाद, 1881 से दशकीय (हर 1० साल में होने वाली) जनगणना एक नियमित व्यवस्था बन गई । भारत में शहरीकरण का अध्ययन करने के लिए जनगणना से निकले कड़े एक बहुमूल्य स्रोत हैं । जब हम इन रिपोर्टो को देखते हैं तो ऐसा लगता है कि हमारे पास ऐतिहासिक परिवर्तन को मापने के लिए ठोस जानकारी उपलब्ध है । बीमारियों से होने वाली मौतों की सारणियों का अन्तहीन सिलसिला, या उम्र, लिंग, जाति एवं व्यवसाय के अनुसार लोगों को गिनने की व्यवस्था से संख्याओं का एक विशाल भंडार मिलता है जिससे सटीकता का भ्रम पैदा हो जाता है । लेकिन इतिहासकारों ने पाया है कि ये कड़े भ्रामक भी हो सकते हैं । इन आँकड्ाएं का इस्तेमाल करने से पहले हमें इस बात को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि कड़े किसने इकट्ठा किए हैं और उन्हें क्यों तथा कैसे इकट्ठा किया गया था । हमें यह भी मालूम होना चाहिए कि किस चीज को मापा गया था और किस चीज को नहीं मापा गया था । न औपनिवेशिक शासन चलाने में कड़ी का क्या महत्त्व था? ० औपनिवेशिक शासकों के लिए मानचित्र क्यों महत्त्वपूर्ण थे? (०) औपनिवेशिक अभिलेखों के माध्यम से शहरीकरण का अध्ययन किस प्रकार किया जा सकता है? ०२ इतिहासकार कड़ी को सदैव अहानिकर क्यों नहीं मानते?

औपनिवेशिक शासकों की करो से संबंधित नीति क्या थी?

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