पृष्ठ:QP-CSM22 HINDI-Compulsory.pdf/३

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निम्नलिखित अनुच्छेद का संक्षेपण लगभग एक-तिहाई शब्दों में लिखिए । इसका शीर्षक लिखने की आवश्यकता नहीं है । संक्षेपण अपने शब्दों में ही लिखिए 6०

साधारणतया 'विकास ' शब्द से अभिप्राय समाज विशेष की स्थिति और उसके द्वारा अनुभव किए गए परिवर्तन की प्रक्रिया से होता है । मानव इतिहास के लंबे अंतराल में समाज और उसके जैव- भौतिक पर्यावरण की निरंतर अंत क्रियाएं समाज की स्थिति का निर्धारण करती है । मानव और पर्यावरण अंतःक्रिया की प्रक्रियाएँ इस बात पर निर्भर करती है कि समाज ने किस प्रकार की प्रौद्योगिकी विकसित की है और किस प्रकार की संस्थाओं का पोषण किया है । प्रौद्योगिकी और संस्थाओं ने मानव-पर्यावरण अंतःक्रिया को गति प्रदान की है तो इससे पैदा हुए संवेग ने प्रौद्योगिकी का स्तर ऊँचा उठाया है और अनेक संस्थाओं का निर्माण और रूपांतरण किया है । अत: विकास एक बहु - आयामी संकल्पना है और अर्थव्यवस्था समाज तथा पर्यावरण में सकारात्मक व अनुऊमणीय परिवर्तन का द्योतक है । विकास की संकल्पना गतिक है और इस संकल्पना का प्रादुर्भाव 2 ०वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ है । द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत विकास की संकल्पना आर्थिक वृद्धि की पर्याय थी जिसे सकल राष्ट्रीय उत्पाद प्रति व्यक्ति आय और प्रति व्यक्ति उपभोग में समय के साथ बढ़ोतरी के रूप में मापा जाता है । परंतु अधिक आर्थिक वृद्धि वाले देशों में भी असमान वितरण के कारण गरीबी का स्तर बहुत तेजी से बढ़ा । अत: 197० के दशक में 'पुनर्वितरण के साथ वृद्धि' तथा 'वृद्धि और समानता ' जैसे वाक्यांश विकास की परिभाषा में शामिल किए गए । पुनर्वितरण और समानता के प्रश्नों से निपटते हुए यह अनुभव हुआ कि विकास की संकल्पना को मात्र आर्थिक प्रक्षेत्र तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता । इसमें लोगों के कल्याण और रहने के स्तर, जन स्वास्थ्य शिक्षा, समान अवसर और राजनीतिक तथा नागरिक अधिकारो से संबंधित मुद्दे भी सम्मिलित हैं । 1980 के दशक तक विकास एक बहु - आयामी संकल्पना के रूप में उभरा जिसमें समाज के सभी लोगों के लिए वृहद् स्तर पर सामाजिक एवं भौतिक कल्याण का समावेश है । 196० के दशक के अंत में पश्चिमी दुनिया में पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर बढ़ती जागरूकता की सामान्य वृद्धि के कारण सतत पोषणीय धारणा का विकास हुआ । इससे पर्यावरण पर औद्योगिक विकास के अनापेक्षित प्रभावों के विषय में लोगों की चिंता प्रकट होती थी । पर्यावरणीय मुद्दों पर विश्व समुदाय की बढ़ती चिंता को ध्यान में रखकर संयुक्त राष्ट्र संघ ने 'विश्व पर्यावरण और विकास आयोग ०१५० ' की स्थापना की जिसकी प्रमुख नार्वे की प्रधानमंत्री ग्रो हरलेम बंटलैंड थी । इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट ' अवर कॉमन फ्यूचर ' (जिसे बंटलैंड रिपोर्ट भी कहते हैं) 1987 में प्रस्तुत की । भ०छछ ने सतत पोषणीय विकास की सीधी-सरल और वृहद् स्तर पर प्रयुक्त परिभाषा प्रस्तुत की । इस रिपोर्ट के अनुसार सतत पोषणीय विकास का अर्थ है-' 'एक ऐसा विकास जिसमें भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकता पूर्ति को प्रभावित किए बिना वर्तमान पीढ़ी द्वारा अपनी आवश्यकता की पूर्ति करना । (445 शब्द)

निम्नलिखित गद्यांश का अंग्रेजी में अनुवाद कीजिए : प्रेमचंद ने कहा था कि कहानियाँ तो चारों तरफ हवा में बिखरी पड़ी हैं, सवाल उन्हें पकड़ने का है । ऐसा इसलिए है कि हर व्यक्ति और हर वस्तु का अपना -अपना जीवन होता है, बाकी सबसे अलग । उसका एक आरंभ विकास और फिर अंत भी होता है । सबकी कोई न कोई कहानी होती है । जिस तरह एक व्यक्ति दूसरे से हू ब-हू नहीं मिलता, वैसे ही उसकी अपनी जीवन -कथा भी दूसरे से नहीं मिलती । ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो अपनी कथा न लिख सके । मेरी आत्मकथा मेरे जीवन की कथा है । यह केवल मेरी कथा है । और जहाँ तक मेरा जीवन दूसरों के जीवन को छूता है वहाँ तक यह दूसरी की भी कथा है । और जहाँ तक मेरा जीवन एक समय, समाज या समूह का प्रतिनिधि जीवन होता है वहाँ तक वह सबकी कथा बन जाती है । प्रत्येक व्यक्ति का जीवन कथा में बदलने के योग्य है । आप कलम हाथ में लेते हैं और कागज पर कुछ लिखने लगते है । सबसे अच्छा है अपने ही जीवन से शुरू किया जाए । अपने बारे में, बचपन से लेकर अब तक जो-जो हुआ वह सब । यही तो आत्मकथा है । आत्मकथा की पहली शर्त है साफ साफ सच सच कहना । इसके लिए भी अभ्यास जरूरी है । नैतिक साहस जरूरी है । अगर पूरी आत्मकथा न भी लिखी जाए तो संस्मरण या डायरी लिखी जा सकती है । कई दिनों-वर्षो की डायरी आत्मकथा बन जाती है ।