पृष्ठ:Rajasthan Ki Rajat Boondein (Hindi).pdf/४३

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रेतीले भागों में जहां कहीं भी थोड़ी-सी पथरीली या मगरा यानी मुरम वाली जमीन मिलती है, वहां टांका बना दिया जाता है। यहां जोर पानी की मात्रा पर नहीं, उसके संग्रह पर रहता है। 'चुर्रो' के पानी को भी रोक कर टांके भर लिए जाते हैं। चुर्रो यानी रेतीले टीले के बीच फंसी ऐसी छोटी जगह, जहां वर्षा का ज्यादा पानी नहीं बह सकता। पर कम बहाव भी टांके को भरने के लिए रोक लिया जाता है। ऐसे टांकों में आसपास थोड़ी 'आड़' बना कर भी पानी की आवक बढ़ा ली जाती है।

नए हिसाब से देखें तो छोटी से छोटी कुंडी, टांके में कोई दस हजार लीटर और मंझौले कुंडों में पचास हजार लीटर पानी जमा किया जाता है। बड़े कुंड और टांके तो बस लखटकिया ही होते हैं। लाख दो लाख लीटर पानी इनमें समाए रहता है।

लेकिन सबसे बड़ा टांका तो करोड़पति ही समझिए। इसमें साठ लाख गैलन यानी लगभग तीन करोड़ लीटर पानी समाता है। यह आज से कोई ३५० बरस पहले जयपुर के पास जयगढ़ किले में बनाया गया था। कोई ९५० हाथ लंबा-चौड़ा यह विशाल टांका चालीस हाथ गहरा है। इसकी विशाल छत भीतर पानी में डूबे इक्यासी खंभों पर टिकाई गई है। चारों तरफ गोख, यानी गवाक्ष बने हैं, ताजी हवा और उजाले को भीतर उतरने के लिए। इनसे पानी वर्ष-भर निर्दोष बना रहता है। टांके के दो कोनों से भीतर उतरने के लिए दो तरफ दरवाजे है। दोनों दरवाजों को एक लंबा गलियारा जोड़ता है और दोनों तरफ़ से पानी तक उतरने के लिए सीढ़ियां हैं। यहीं से उतर कर बहंगियों से पानी ऊपर लाया जाता है। बाहर लगे गवाक्षों में से किसी एकाध की परछाई खंभो के बीच से नीचे