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अध्याय २३ : गृह-व्यवस्था


इस साथी को रखकर मैंने अच्छा काम करने के लिए बुरे साधन को अपनाया था। कड़वे-करेले की बेल मैं मैने सुगंधित बेले के फूल की आशा रखी थी। साथी का चाल-चलन अच्छा न था, फिर भी मैंने मान लिया था कि वह मेरे साथ बेवफा न होगा। उसे सुधारने का प्रयत्न करते हुए मुझे खूद छींटे लगते-लगते बचे। अपने हितैषियों की सलाह का मैंने अनादर किया। मोह ने मुझे अंधा बना दिया था।

यदि इस दुर्घटना से मेरी आंख न खुली होती, मुझे सत्य की खबर न पड़ी होती, तो संभव है कि मैं कभी वह स्वार्पण न कर सकता, जो आज कर पाया हूँ। मेरी सेवा हमेशा अधूरी रहती; क्योंकि यह साथी मेरी प्रगति को रोके बिना नहीं रहता। मुझे उसके लिए बहुतेरा समय देना पड़ता। मुझे अंधे रेमें रखने को, कुमार्ग में ले जाने की शक्ति उसमें थी। पर जाको राखे साइयां मार सके नहि कोय।' मेरी निष्ठा शुद्ध थी। इसलिए भूलें करते हुए भी मैं बन गया और मेरे पहले अनुभव ने ही मुझे सावधान किया है।

कौन जाने, ईश्वर ने ही उस रसोइये को प्रेरणा की हो ! वह रसोई बनाना न जानता था; परंतु उसके आये बिना मुझे कोई सजग न कर पाता। वह बाई पहली ही बार मेरे घर में न आई थी; परंतु इस रसोइये की तरह दूसरे की हिम्मत नहीं पड़ती; क्योंकि सब जानते थे कि मैं उस साथीपर बेहद विश्वास रखता था।

इतनी सब करके रसोइया उसी दिन और इसी क्षणं चला गया। उसने कहा----"में आपके यहां नहीं रह सकता ! आप ठहरे भले आदमी; यहां मुझ जैसो का काम नहीं। मैंने भी उससे रहने का आग्रह नहीं किया।

उस कारकुन पर शक पैदा कराने वाला यह साथी ही था, यह बात मुझे अब जाकर मालूम हुई। मैंने उस कारकुन के साथ न्याय करने का बहुत उधोग किया; पर मैं उसे पूरी तरह संतोष न दे सका। मुझे इस बात का सदा दु:ख रहा है। फूटा बरतन कितना ही झाला जाय, अह झाला हुआ ही माना जायगा; नया जैसा साबित न होने पायेगा।