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आत्म कथा : भाग ३


हूं।

किंतु यह स्वावलंबन की खूबी में मित्रों को न समझा सका।

मुझे कहना चाहिए कि अंत को मैंने अपने काम के लायक कपड़े धोने की कुशलता प्राप्त करली थी और मुझे कहना चाहिए कि धोबी की धुलाई से घर की धुलाई किसी तरह घटिया नहीं रहती थी। कालर का कड़ापन और चमक धोबी के धोये कालर से किसी तरह कम न थी।

गोखले के पास स्व० महादेव गोविंद रानडे का प्रसाद-स्वरूप एक दुपट्टा, था। गोखले उसे बड़े जतन से रखते और प्रसंग-विशेषपर ही उसे इस्तेमाल करते। जोहान्सबर्ग में उनके स्वागत के उपलक्ष्य में जो भोज हुआ था, वह अवसर बड़े महत्त्व का था। दक्षिण अफ्रीका में यह उनका सबसे बड़ा भाषण था। इसलिए इस अवसर पर यह दुपट्टा डालना चाहते थे। उसमें सिलवटें पड़ गई थी और इस्तिरी करने की जरूरत थी! धोबी के यहां भेजकर तुरंत इस्तिरी करा लेना संभव न था। मैंने कहा--" जरा मेरी विद्या को भी अजमा लीजिए।

“तुम्हारी वकालत पर में विश्वास कर सकता हूं; पर इस दुपट्टेपर तुम्हारी धुलाई-कला की अजमाइश न होने दूंगा। तुम कहीं इसे दाग दो तो ? जानते हो, इसका कितना मूल्य है ? यह कहकर उन्होंने अति उल्लास से इस प्रसादी की कथा मुझे कह सुनाई ।।

मैंने आजिजी के साथ दाग न पड़ने देने की जिम्मेदारी ली। फलतः मुझे इस्तिरी करने की इजाजत मिल गई और बाद को अपनी कुशलता का प्रमाण-पत्र भी मुझे मिला। अब यदि दुनिया मुझे प्रमाण-पत्र न दे तो इससे क्या ?

जिस तरह मैं धोबी की गुलामी से छूटा, उसी तरह नाई की गुलामी भी छुटने का अवसर आ गया। हाथ से दाढ़ी बनाना तो विलायत जानेवाले सभी सीख लेते हैं, पर मुझे खयाल नहीं कि बाल काटना भी कोई सीख लेते हों। प्रिटोरिया में एक बार में अंग्रेज नाई की दूकानपर गया। उसने मेरे बाल काटने से साफ इन्कार कर दिया और ऐसा करते हुए तिरस्कार प्रदर्शित किया सो अलग। मुझे बड़ा ही दुःख हुआ। में सीधा बाजार में पहुंचा। बाल काटने की कैची खरीदी और आइने के सामने खड़े रहकर अपने बाल काट डाले। बाल ज्यों-त्यों कटे तो; पर पीछे के बाल काटने में बड़ी दिक्कत पेश आई। फिर भी जैसे चाहिए न कट